आत्मनिर्भर : नैतिक कहानी | Short Moral Story

 आत्मनिर्भर : नैतिक कहानी | Short Moral Story 


एक गांव के सरपंच का काफी बड़ा परिवार था। उसे 4 बेटे और चार बहुएं और उन सबके मिलके 7 पोता पोती थे। सरपंच की उम्र हो चली थी। बढ़ती उम्र के साथ सरपंच की आंखे कमजोर होने लगी थी।


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 जब आंखों की तकलीफ बढ़ गई तो एक दिन उनके घर डॉक्टर आया। बूढ़े सरपंच की आंखे चेक करने के बाद डॉक्टर ने उन्हें आंखों का ऑपरेशन कराने की सलाह दी। बूढ़ा सरपंच इस बात के लिए नहीं माना और बोला," मुझे ऑपरेशन की भला क्या जरूरत? ऑपरेशन कराने से तकलीफ होगी, पैसे खर्च होंगे। मेरा इतना बड़ा परिवार है ना, 4 बेटे हैं, चार बहुए हैं और इतने सारे नाती पोते भी। इनमें से कोई ना कोई मेरा आस-पास हमेशा  ही रहता है। क्या यह मेरी आंखें नहीं है?


उस दिन डॉक्टर कहां से चला गया। कुछ महीने की आंखों की तकलीफ और ज्यादा बढ़ गई। डॉक्टर को बुलाया गया। डॉक्टर ने सरपंच को फिर से आंखों का ऑपरेशन कराने की सलाह दी। डॉक्टर ने कहा इस बार तो आंखों का ऑपरेशन करा ही लो वरना आगे जाकर तकलीफ और ज्यादा बढ़ेगी। बूढ़ा सरपंच इस बार भी नहीं माना।


इस बात को कुछ ही दिन बीते थे की सरपंच के घर में आग लग गई। बूढ़े सरपंच का पूरा परिवार उसे भूलकर अपनी अपनी जान बचाने के लिए बहार भाग गए। किसी ने भी बूढ़े की जान बचाने की नहीं सोची। थोड़ी देर बाद एक भले पड़ोसी ने बूढ़े को आग से बचाया लेकिन तबतक बूढ़ा काफी झुलस गया था।


इस घटना ने बूढ़े को सोचने पर मजबूर कर दिया की शायद उसने डॉक्टर की सलाह मान ली होती और वो देख पा रहा होता तो आज उसकी इतनी बुरी हालत नही होती।


मनुष्य हमेशा अपने परिवार पर, रिश्तेदारों पर, पैसों पर घमंड करता है लेकिन जरूरत के समय इन में से कुछ भी काम नही आता। सबसे अच्छा और समझदारी का काम ये है की हमेशा आत्मनिर्भर बने रहे। कभी किसी से शारीरिक सेवा या पैसों के लिए हाथ ना फैलाना पड़े इसलिए हमेशा काम करते रहो काम करते रहे, कमाते रहे।


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