जल्दबाजी : एक शिक्षाप्रद कहानी | Hindi Kahani
दो बौद्ध भिक्षुक एक मठ में रहा करते थे। एक बुजुर्ग था और एक जवान। यह गुरु शिष्य की जोड़ी एक दिन किसी नगर के सफर के लिए निकले।
यह दोनों जिस नगर के लिए जा रहे थे उस नगर के प्रवेश पर एक बड़ा सा गेट था। यह गेट शाम को एक निश्चित समय पर बंद कर दिया जाता था। इन दोनों को उस नगर में बहुत जरूरी काम था इसलिए वह किसी भी तरह गेट बंद होने से पहले उस नगर तक पहुंच जाना चाहते थे। लेकिन सिर्फ समय ही उनके लिए एक बाधा नहीं थी एक और बड़ी बाधा थी इस नगर के रास्ते में आने वाली एक नदी।
दोनों गुरु शिष्य बड़ी जल्दी-जल्दी में अपने सफर को खत्म करना चाहते थे। दोनों बड़ी तेजी दिखाते हुए उस नदी तक पहुंच गए जिसे पार करके उन्हें नगर के उस गेट तक पहुंचना था। बारिश का मौसम था इसलिए सामान्य रूप से जितना उस नदी में पानी होता था उससे ज्यादा था। दोनों ने नदी तक पहुंचने के बाद समय देखा तो अब नगर के गेट बंद होने के लिए ज्यादा समय बचा नहीं था।
ज्यादा पानी होने की वजह से वह दोनों नदी में तैर कर जाने का रिस्क नहीं ले सकते थे इसलिए गुरु ने इधर-उधर देखा तो उसे एक जगह पर एक नाविक बैठा हुआ नजर आया। गुरु ने नाविक को नदी पार कराने के लिए मना लिया। नाविक के साथ दोनों गुरु और चेला नाव में सवार हो गए और नाविक को कहने लगे कि जरा जल्दी-जल्दी इस नदी को पार करवा दो।
नाविक जरा अलग ही किस्म का शांत स्वभाव का आदमी था। नाविक बोला जल्दी-जल्दी में कोई किसी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता! जो भी होगा आराम से होगा! गुरु और चेले ने नाविक से कहा कि आराम से हम जायेंगे तो उस गेट के बंद होने से पहले नहीं पहुंच पाएंगे।
नाविक बोला आराम से जाओगे तो ही पहुंच पाओगे। जल्दबाजी करोगे तो नहीं पहुंच पाओगे! नाविक अपनी गति से बिना उनकी बात सुने उन्हें किनारे तक ले गया।
किनारे पर आते ही गुरु और शिष्य ने बहुत जल्दबाजी दिखाई और वह गेट की तरफ दौड़ने लगे। नदी किनारे से गेट तक का रास्ता बड़ा पथरीला और झाड़ियों वाला था। जल्दबाजी में बूढ़े बौद्ध भिक्षुक का झाड़ियों में पैर फसा और वह गिर गया। गिरते ही पत्थर से उसके सिर पर घाव बन गया और काफी खून बहने लगा। शिष्य ने जो आगे निकल चुका था वापस आकर अपने गुरु को उठाया और उनका घाव साफ किया, उन्हें बिठाया तब तक नगर का दरवाजा बंद हो गया। अब उन्होंने उसी नावीक को मदद के लिए बुलाया और उसकी झोपड़ी में जाकर रात बिताने की व्यवस्था की।
जब गुरु को थोड़ा अच्छा महसूस हुआ तब नाविक ने उससे कहा कि आप लोग मुझसे ज्यादा ज्ञानी है, लेकिन मेरे थोड़े से ज्ञान पर जो मैने किताबें पढ़कर नहीं बल्कि अनुभवों से पाया था आपने ध्यान नहीं दिया अगर आपने मेरी बात मान कर आराम से गेट की तरफ गए होते तो आज आप मेरी झोपड़ी में रात बिताने के बजाय नगर में आराम से रात बिता रहे होते।
दोस्तों हम भी अपने जीवन में इसी तरह जरूरत से ज्यादा जल्दबाजी दिखाते हैं और इसी जल्दबाजी में हम कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जो खुद ही हमें अपनी मंजिल तक पहुंचने से रोक देती है। माना की मंजिल पर पहुंचना जरूरी है लेकिन क्या उस मंजिल तक पहुंचने वाले रास्ते का,सफर का आनंद लेना जरूरी नहीं है?
