मन की शांति : शिकाप्रद कहानी | Shikshaprad Kahani

 मन की शांति : शिकाप्रद कहानी  | Shikshaprad Kahani 


एक गांव में एक साधु रहने आया। साधु ने कठोर तपस्या कर कई सिद्धियां हासिल की थी इसलिए साधु जल्दी ही इस गांव में और आजू बाजू के गावों में प्रसिद्ध हो गया। 


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इस गांव के पड़ोसी गांव में एक व्यापारी रहता था। व्यापारी धनवान बहुत था इसलिए उसके पास किसी भौतिक वस्तु की कोई कमी नहीं थी। लेकिन जैसा होता है हर आदमी कुछ ना कुछ कमी महसूस करता ही है.. इस व्यापारी को भी मन से शांति नहीं थी। मन से शांति पाने के लिए व्यापारी कई तरह के नुस्खे आजमा चुका था लेकिन किसी ने भी उसे सफलता नहीं मिली थी।


गांव के लोगों से साधु के बारे में काफी प्रशंसा सुनने के बाद व्यापारी ने तय किया कि वह इस साधु से जाकर मिलेगा। और उनसे उसकी समस्या का समाधान मांगेगा। हो सकता है अपनी सिद्धियों के बल पर वह उसे मन में शांति लाने में मदद करें।


अगले दिन व्यापारी साधु जहां रहता था उस कुटिया के पास पहुंच गया। व्यापारी ने अपने मन की सारी बात साधु को अच्छे से बताइ। साधु ने उसकी बात सुनने के बाद व्यापारी से कहा कि तुम्हें कुछ दिनों तक मैं जैसा कहूं वैसा करना पड़ेगा और यही रहना पड़ेगा। व्यापारी किसी भी तरह मन की शांति पाना चाहता था इसलिए वह तैयार हो गया।


अगले दिन साधु ने व्यापारी से कहा कि आज के दिन तुम बाहर बैठोगे। साधु ने व्यापारी को एक जगह बताइए जहां पर उसे बैठना था। सूरज चढ़ते ही तेज धूप सेठ पर पड़ने लगी। सेट ए देखकर हैरान था कि साधु खुद कुटिया के अंदर छाया में बैठा है और उसे धूप में बिठा कर रखा है! व्यापारी को काफी गुस्सा आया लेकिन वह किसी तरह अपने गुस्से को पी गया।


अगले दिन साधु ने व्यापारी को फिर से उसी जगह बिठाया और इस दिन उसे खाना नहीं मिलेगा यह भी बताया। व्यापारी को समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा तू ऐसा क्यों कर रहा है? साधु दोपहर को भूखे व्यापारी को सामने बैठ कर ही अच्छा अच्छा भोजन खाने लगा!


जैसे-तैसे व्यापारी ने पूरा दिन तो बता दिया लेकिन भूख और गुस्से के मारे व्यापारी को पूरी रात नींद नहीं आई। वह पूरी रात यह सोचता रहा कि आखिर साधु उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है? उसे लगा कि साधु उसकी समस्या का हल बताना ही नहीं चाहता इसलिए ऐसा कर रहा होगा.. इसलिए सुबह उठते ही उसने अपना सामान लिया और वहां से जाने की तैयारी की।


व्यापारी को जाता हुआ देखकर साधु ने उसे रोका और अपने पास बुलाया। साधु ने पूछा कि वह क्यों वापस जा रहा है? व्यापारी ने कहा कि वह जो पाने के लिए यहां आया था वह उसे मिला ही नहीं इसलिए उसका वहां पर रहना व्यर्थ है।


साधु ने उसे कहा कि मैंने तुम्हें बहुत कुछ दिया लेकिन तुमने कुछ लिया ही नहीं! व्यापारी को कुछ समझ में नहीं आया..वह बोला आपने तो मुझे कुछ भी नहीं दिया।


साधु ने कहा कि जब मैं तुम्हें धूप में बिठाकर खुद छांव में बैठा तब मेरे सर पर पड़ने वाली छांव तुम्हारे किसी काम की नहीं है यह तुम्हें समझ जाना चाहिए था। तुम नहीं समझे तब मैंने तुम्हें भूखा रखा और तुम्हारे सामने अच्छा भोजन खाया तब भी तुम नहीं समझे कि मेरा खाना खाने से तुम्हारा पेट नहीं भरने वाला। यही बात को आगे बढ़ाते हुए मैं तुम्हें बताता हूं कि मेरी सिद्धियों से तुम्हें मन की शांति नहीं मिलने वाली। जैसे तुमने अपने परिश्रम से धन, नाम, रुतबा सब कमाया है वैसे ही तुम्हें अपने मन की शांति भी खुद ही कमानी होगी।


व्यापारी साधु 

की बात समझ गया और उसने साधु से कहा कि मैं यहां किसी ताबीज या किसी वस्तु को पाने की आशा से आया था। लेकिन आपने मुझे उससे भी कीमती चीज दे दी। उसने साधु को धन्यवाद किया और खुशी-खुशी अपने घर वापस लौट गया।


दोस्तों हमारे जीवन की परेशानियां हम ही हल कर सकते हैं। हां, किसी और से हम उन्हें हल करने का रास्ता जरूर जान सकते हैं लेकिन कोई और व्यक्ति उन्हें हमारे लिए कभी हल नहीं कर सकता।

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