एक आदमी पैदल चलते हुए एक लंबी सफर के लिए निकला था। वह दो-तीन घंटे से लगातार चल रहा था इसलिए काफी थक गया था और धूप भी काफी तेज थी।
कुछ मिनट और चलने के बाद उसे एक गांव में एक बरगद का पेड़ दिखा। मुसाफिर उसे बरगद के पेड़ के सामने जाकर खड़ा हो गया। उस पेड़ के ठीक सामने एक घर था। उस घर का मालिक बरामदे में आया। उसने मुसाफिर को देखा और उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया।
मुसाफिर सोचने लगा.. कैसा आदमी है मुझे थका हुआ देखकर मेरी हालत पर हस रहा हैं!
मुसाफिर ये सोच ही रहा था की आदमी ने उससे पूछा : काफी थके हुए लगते हो, पानी पिओगे?
मुसाफिर ने हा कहा, आदमी पानी लेने घर के अंदर चला गया। मुसाफिर सोचने लगा की आदमी तो भला लगता है तभी तो बिना मांगे पानी दे रहा है।
मुसाफिर वही खड़े होकर उसका इंतजार करने लगा लेकिन 10 मिनट होनेपर भी जब आदमी पानी लेकर नही आया तो वो फिर से उस आदमी के बुरा सोचने लगा : जब पानी पिलाना ही नहीं था तो पूछा भी क्यों?
तब तक आदमी बाहर आया और मुसाफिर को देते हुए बोला मैंने सोचा सिर्फ पानी से क्या होगा? थकान के लिए कुछ और बेहतर होगा इसलिए मैने आपके लिए शिकंजी बनाई है लीजिए पी लीजिए!
मुसाफिर उस आदमी को उदारता देखकर भौचक्का रह गया और उसे अपनी निरंतर बेवजह बदलती सोच के लिए शर्मिंदगी हुई।
दोस्तों है कि नहीं एकदम हमारी लाइफ से रिलेट करनेवाली कहानी। हम भी बिलकुल उस मुसाफिर की तरह अपने विचार बारबार बदलते रहते है। हम किसी व्यक्ति या घटना को बिना अच्छे से समझे उसके प्रति कोई राय बना लेते है। लेकिन इस कहानी को पढ़ने के बाद मैं एकदम से किसी के भी प्रति कोई राय नहीं बनाने वाला।
