कहानी - जीवन की जिम्मेदारियां | Moral story in Hindi

 दोस्तों, आज की ये कहानी बहुत ही मजेदार है, इस कहानी में हम दो दोस्तों की बात करने वाले है।

नमन और जय यह दो बचपन से ही बहुत पक्के मित्र थे वैसे तो दोनों ही बहुत समझदार थे लेकिन नमन जहां दिल से सोचता था वही जय दिमाग से।


कहानी - जीवन की जिम्मेदरियां
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नमन और जय काफी बार आपस में यह बात कर चुके थे कि एक दिन वह घूमेंगे,फिरेंगे दुनिया की सैर करेंगे और मरने से पहले वह सारा कुछ करेंगे जो उनको मन में करने की इच्छा है। जय जब-जब नमन को कहता कि चलो  हम जो करना चाहते हैं वो सब आज से ही शुरू करते हैं तब तब नमन कहता कि अभी नहीं यार अभी मेरे ऊपर काफी जिम्मेदारी है वह खत्म हो जाए फिर करेंगे ना।


जय जानता था कि इस तरह तो वह अपनी इच्छाएं कभी पूरी ना कर पाएंगे, कोई उपाय करना होगा जिससे नमन को यह बात समझ में आ जाए। 


एक दिन नमन और जय किसी दूसरे गांव जाने को निकले बीच में एक नदी आई। जय नदी के किनारे ही बैठ गया और नदी के पानी की तरफ देखने लगा नमन को लगा जय थक गया है इसलिए किनारे पर बैठ गया है आराम करने के लिए।


काफी घंटे बीतने के बाद भी जब जय उधर ही बैठे पानी की तरफ देखता रहा तब नमन ने उसे पूछा, "भाई तुम किनारे पर बेवजह क्यों बैठे हो तुम्हें चलना नहीं है क्या?" "चलेंगे चलेंगे जरूर चलेंगे एक बार नदी का सारा पानी बह जाने दो फिर आराम से जाते है!" ,जय ने कहा।


"कैसी मूर्खो जैसी बातें कर रहे हो भला नदी का पानी भी कभी बहके खत्म होता है क्या? ऐसे तो हम कभी भी उस पार नहीं जा पाएंगे।", नमन बड़े गुस्से से बोला। "अच्छा! तुम्हे यह सब समझ में आता है? फिर भी तुम अपने जीवन रूपी नदी में जिम्मेदारियों का पानी बह जाने का इंतजार कर रहे हैं और हमने जो बचपन से सोच रखा है उस पार जाने की वहां ना खुद जा रहे हो ना मुझे जाने दे रहे हो।" 


नमन को अब सारी बात समझ में आई कि जय क्यों ऐसा व्यवहार कर रहा था और उसे यह भी समझ में आ गया कि जिम्मेदारियां कभी खत्म नहीं होती इसलिए उसे अपनी इच्छाओं को टालते रहना नहीं होगा।

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