मूर्ख से पड़ा पाला ...एक मजेदार कहानी | Majedaar Kahani

 अकबर बीरबल की बहुचर्चित कहानियां और किस्से देश ही नहीं विदेश में भी बहुत प्रचलित है। अकबर और बीरबल की हर एक कहानी बड़ी ही दिलचस्प होती है और हर कहनी एक सबक,एक बेहतरीन पाठ हमें सिखाती है। आज की यह कहानी भी जितनी मजेदार है उतना ही कीमती पाठ भी हमें सिखाती है।


मूर्ख से पड़ा पाला ...एक मजेदार कहानी | Majedaar Kahani



मूर्ख से पड़ा पाला ...एक मजेदार कहानी | Majedaar Kahani 


तो चलिए पढ़ते हैं अकबर बीरबल की यह इंटरेस्टिंग स्टोरी...


बादशाह अकबर अपने मन में आने वाले हर तरह के सवाल,चाहे वह कितने ही उटपटांग क्यों ना हो हमेशा बीरबल से पूछ लेते थे और अपेक्षा रखते थे की बीरबल उसे उसका उत्तर दे।


एक बार अकबर और बीरबल साथ में बैठे हुए थे। तब अकबर ने बीरबल से कहा,"बीरबल मुझे एक ख्याल हमेशा ही आता है की तुम जो इतने बुद्धिशाली हो, तो तुम्हारे जो पिता है वह कितने बुद्धिशाली होंगे? और मेरा मन है कि 1 दिन तुम्हारे पिता को जरूर मिलू और देखू कि वह बुद्धि मैं तुम से भी बढ़कर है या नहीं!"


बीरबल ने अकबर से कहा," महाराज मेरे पिता एकदम सीधे साधे, भोले भाले और गांव देहात में रहने वाले सरल आदमी है। उनसे मिलकर आपको कुछ भी हासिल नहीं होगा इसलिए अच्छा होगा आप उनसे मिलने का ख्याल छोड़ दे।"


अकबर को लगा बीरबल शायद इसलिए अपने पिता से मिलवाना नहीं चाहता क्योंकि हो सकता है उसके पिता उससे भी ज्यादा बुद्धिशाली हो और अपने से ज्यादा बुद्धिशाली व्यक्ति को मेरे सामने लाकर वह अपना महत्व कम नहीं करना चाहता होगा। अकबर ने बीरबल की एक न सुनी और उसे हुक्म दिया कि अगर 8 दिनों में उसने अपने पिता से उन्हें नहीं मिलवाया तो परिणाम अच्छा नहीं होगा।


बीरबल के पास और कोई चारा नहीं था तो बीरबल ने गांव से अपने पिता को संदेश भिजवा कर बुलवा लिया। बीरबल अब सच में दुविधा में था क्योंकि उसके पिता सच में बहुत सरल और भोले-भाले आदमी थे। बीरबल ने अपने पिता को अच्छे नए कपड़े खरीद कर दिए और उन्हें एक बात कही कि चाहे कुछ भी हो जाए, अकबर कुछ भला बुरा कहे या गुस्सा करें आपको उनके सामने बिल्कुल मुंह नहीं खोलना है।


बीरबल के पिता अपने बेटे की बात मानकर अकबर के दरबार में गए। उनको देखते ही अकबर ने पहचान लिया कि वह बीरबल के पिता है लेकिन सिर्फ बात शुरू करने के लिए अकबर ने कहा," क्या आप ही बीरबल के पिता है?"


बीरबल के पिता बिना कुछ बोले वहीं पर शांति से खड़े रहे। जैसे उन्हे अकबर की भाषा समझ में ही ना आ रही हो!


अकबर ने एक के बाद एक कई सवाल किए,"आपके गांव का नाम क्या है? गांव में सभी लोग कैसे हैं? इस साल बारिश हुई या नहीं और फसल कैसी है?"


लेकिन बीरबल के पिता अपने बेटे के समझाएं अनुसार एक भी शब्द नहीं बोले। अकबर को गुस्सा आ गया और वह बड़बडाने लगा ," कैसे मूर्ख से आज पाला पड़ गया है। मेरी ही मति मारी गई थी जो ऐसे मूर्ख को अपने पास बुलवाया जो इतने सरल सवालों के जवाब भी नहीं दे सकता।"


मूर्ख शब्द सुनकर बीरबल के पिता को मन ही मन काफी गुस्सा आया लेकिन फिर भी वह शांत रहे। आखिरकार अकबर ने उन्हें जाने के लिए कह दिया। वो वहां से चले गए और घर जाकर बेटे बिरबल को सारी बात बताई। बीरबल ने उन्हें समझा कर वापस गांव भेज दिया।


2 दिनों बाद जब अकबर बीरबल से मिला तो अकबर बीरबल से पूछने लगा,"बीरबल एक बात बताओ जब हमारा पाला किसी मूर्ख से पड़ जाए तो उस स्थिति में हमें क्या करना चाहिए और कैसे करना चाहिए?"


बीरबल इसी मौके की तलाश में था! बीरबल ने तुरंत अकबर को जवाब दिया,"महाराज जब भी हमारा पाला किसी मूर्ख से पड़ जाए तो उस स्थिति में सबसे बेहतर जो हम कर सकते हैं वह है चुप रहना। ठीक उसी तरह जिस तरह से मेरे पिताजी आपके सामने चुप थे!"


यह सुनकर अकबर का मुंह देखने लायक था क्योंकि बीरबल ने ना सिर्फ अपने पिता का बदला ले लिया था बल्कि यह भी साबित कर दिया था किस सच में अगर कोई मूर्ख है तो वह अकबर है ना कि उसके पिताजी।


दोस्तों,हमेशा की तरह इसी उम्मीद के साथ कि आपको "मूर्ख से पड़ा पाला ...एक मजेदार कहानी" पसंद आई होगी और आपने पूरी कहानी पढ़ी होगी, मैं दिल से आपको धन्यवाद करता हूं।



 कहानी : राजा दशरथ की सीख | Majedaar Kahani 


शीर्षक पढ़ कर आप लोगो को पता चल ही गया होगा की आज की कहानी रामायण काल की है। सीता-राम के विवाह से जुड़ीं ये प्रेरक कहानी है। जब श्रीराम और सीता का विवाह हो रहा था, तब अयोध्या से राजा दशरथ जो की भगवान राम के पिता थे वे अपने नगर वासियों के साथ बारात लेकर जनकपुर आए थे। 


अलग अलग जगह रहनेवाले लोगो में आदते अलग अलग होती हैं। एक तरफ अयोध्या के लोग थे जो काफी मृदुभाषी थे वही दूसरी तरफ उस समय मिथिला के लोग अपशब्द कहने में बड़े माहिर थे। 


जनकपुर में बारात आई हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि सभी को वहां छे व्यंजन परोसे गए थे। राजा दशरथ औ उनके साबी बेटे और बाकी के बाराती जबर भोजन


कर रहे थे, उस समय जनकपुर की स्त्रियां अपने मधुर कंठ से अयोध्यावासी के लोगो का नाम लेकर अपशब्द गुनगुनाने लगी। 

एक बार तो राजा जनक डर गए कि कहीं किसी बाराती को बुरा न लग जाए।

लेकिन राजा दशरथ और सभी राजकुमार अपशब्द को सुनकर जोर जोर से हंसने लगे। जनक उनके ऐसे व्यवहार से काफी अचंभित रह गए तब दशरथ ने उन्हें समझाते हुए कहा की 'इनके अपशब्द सुनकर हमें


इसलिए अच्छा लग रहा है क्योंकि अवसर विवाह का है।अपशब्द का अर्थ होता है, व्यक्ति कुछ ऐसे शब्द कहता है, जिसमें सामने वाले की खिल्ली उड़ाई जाती है, या व्यंग किया जाता हैं और कई मौकों पर उसे अपमानित किया जाता है, लेकिन विवाह का प्रसंग हो तो अपशब्द भी अच्छे लगते हैं बस उनमें सामनेवाले का अपमान करने का भाव न हो।


सीख - राजा दशरथ ने हमें सिखाया की अच्छे अवसर पर अपशब्द भी हसने का काम कर सकते हैं सिर्फ ध्यान रखना चाहिए की उनमें


व्यंग्य हो, तर्क हो, ध्यान रखें ऐसे अपशब्द को भूलकर भी न कहे जिनसे सामने वाला व्यक्ति अपमानित होकर गुस्सा कर जाए।


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