सूरदास और उसके गुरु की कहानी| surdas ki kahani

  सूरदास और उसके गुरु की कहानी| Motivational kahani 


आज की कहानी समर्पित करते हैं 14 वी सदी के महान संत, कवि और संगीतकार रह चुके सूरदास को। जी हां उन्हीं सूरदास को जो आंखों से अंधे थे लेकिन अपने ज्ञान चक्षु से पूरी दुनिया देखनेवाले।


सूरदास और उसके गुरु की कहानी| Motivational kahani


सफल और महान कहलाए जाने वाले हर व्यक्ति के पीछे सबसे बड़ा हाथ होता है उसके गुरु का क्योंकि गुरु ही उस  व्यक्ति के उन गुणों को निखारता है जो उसे महान बनाते हैं। यह बात सूरदास ने अपने युवावस्था में आते-आते समझ ली थी। सूरदास ने अपने लिए उचित गुरु की तलाश शुरू की,एक ऋषि गुरु के रूप में उसे पसंद आये।


सूरदास उस ऋषि के पास पहुंच गया और उनसे जाकर विनती की, कि वह अध्यात्म की शिक्षा उसे दे। हृषि पहले से सूरदास के सभी गुणों के बारे में जानते थे साथ में ऋषि को यह भी पता था सूरदास अपने क्रोध पर कभी भी काबू नहीं रख पाता है। 


ऋषि ने सूरदास को एक शर्त पर अध्यात्म की शिक्षा देने का वचन दिया। ऋषि ने कहा मैं जो कहता हूं वह तुम करो और जब मुझे लगेगा कि तुम शिक्षा के लिए तैयार हो तभी मैं तुम्हें अपना शिष्य स्वीकार  करूंगा।


सूरदास को भी इस शर्त से कोई दिक्कत नहीं थी। सूरदास बोला," गुरुजी आप मुझे चाहे अपना शिष्य स्वीकार करें या ना करें,मैं आपको गुरु स्वीकार कर चुका हूं और अभी से मैं आपकी हर बात मानने के लिए तैयार हूं बताइए मुझे क्या करना होगा?


गुरु ने उससे कहा," आज से 1 महीना खत्म होने तक तुम्हें अपने दिनचर्या में होने वाली हर क्रिया के साथ भगवान का नाम जपना होगा, अगर तुम ऐसा कर पाते हो तभी तुम मेरे पास आना वरना अपने लिए कोई दूसरा गुरु तलाश लेना।"


सूरदास वहीं से भगवान का नाम जपता जपता अपने घर लौट गया। तभी से शुरू करके 1 महीने तक उसने निरंतर हर काम के साथ भगवान का जाप कभी नहीं बंद किया। एक महीना खत्म होने पर वह गुरु के आश्रम की और आ निकला। 


जब वह आश्रम के काफी करीब पहुंच गया तब रास्ते में एक सफाई कर्मचारी कचरा साफ कर रहा था। जिसके पास से जब सूरदास गुजरा तो सूरदास के कपड़ों पर गंदगी लगने से उसके कपड़े खराब हो गए। सूरदास को इस बात का एहसास होते ही उसे बहुत गुस्सा आया। उसने ऊंची आवाज में उस सफाई कर्मचारी को डांटा और उससे कहा,"क्या तुम भी अंधे हो गए हो? तुम देख नहीं सकते मेरे कपड़े तुमने खराब कर दिए।"


सफाई कर्मचारी ने सूरदास से माफी मांगी लेकिन सूरदास का गुस्सा कम ना हुआ और वह वापस अपने घर की ओर लौट गया। सूरदास अपने घर पहुंच कर अपने कपड़े बदल कर फिर से गुरु के आश्रम पहुंचा। गुरु ने सूरदास से कहा ,"मुझे लगता है तुम अभी तैयार नहीं हुए हो तो तुम्हें एक महीना और यही जाप निरंतर चालू रखना पड़ेगा।"


सूरदास गुरु की बात कैसे टाल सकता था? उसने गुरु के पैर छुए और वापस भगवान का जाप करते करते अपने घर लौट आया और भगवान का जाप करते करते ही एक महीना और बिता दिया।


एक बार फिर से सूरदास साफ-सुथरे कपड़े पहनकर गुरु के आश्रम की तरफ आ निकला। इस बार फिर से रास्ते में वहीं सफाई कर्मचारी था और जब सूरदास उसके पास से गुजरा तो फिर से उसके कपड़ों पर गंदगी उड़ने से सूरदास के कपड़े खराब हो गए और इस बार तो सूरदास का गुस्सा सातवें आसमान पर था। अगर सूरदास देख पाता तो शायद उस कर्मचारी को मार ही देता! 


सूरदासने फिर से गुस्से में कर्मचारी को डाटा, भला बुरा कहा और फिर से अपने घर जाकर कपड़े बदलकर गुरु के पास आ पहुंचा। इस बार भी गुरु ने वही बात दोहराई," अभी तुम तैयार नहीं हो! तुम्हें 1 महीने तक ओर यह कार्यक्रम जारी रखना होगा।" सूरदास फिर से गुरु के पैर छूकर भगवान का नाम जपते जपते अपने घर लौट आया।


2 महीनों से भगवान का नाम जपते जपते सूरदास को अब भगवान का नाम जपने कि जैसे आदत हो गई थी। तीसरा महीना कैसे बीत गया उसे पता भी नहीं चला। महीना खत्म होने पर सूरदास फिर से अच्छे कपड़े पहन कर गुरु के आश्रम की तरफ चल निकला।


आश्रम के पास आते ही फिर से वहीं सफाई कर्मचारी वहां पर सफाई कर रहा था। सारी घटना वैसी की वैसी दोहराई गई, फर्क सिर्फ इतना था कि इस बार सूरदास को तनिक भी क्रोध नहीं आया। इस बार जो हुआ उसने सफाई कर्मचारी को आश्चर्यचकित और गुरु को खुश कर दिया। अपने कपड़ों पर गंदगी उड़ने के बाद भी सूरदास हाथ जोड़ते हुए सफाई कर्मचारी को धन्यवाद बोला। सूरदास बोला कि धन्यवाद आपने मुझे मेरे क्रोध को नियंत्रण में लाने के लिए बहुत मदद की है।


सूरदास इस बार बिना कपड़े बदले ऐसे ही अपने गुरु के पास पहुंचा तब गुरु भी उस पर खुश होते हुए बोला,"आओ मेरे प्रिय शिष्य! अब तुम बिल्कुल तैयार हो। चलो, तुम्हारी अध्यात्म की शिक्षा शुरू करते हैं।"


दोस्तों यह सुंदर कहानी हमें यह पाठ पढ़ा कर जाती है


सच्चा गुरु वही होता है जो शिष्य की सभी खूबियों के साथ उसकी कमियों को भी जाने और ना सिर्फ उसकी कमियों को जाने बल्कि उन्हें कैसे दूर करना है उसके उपायों के बारे में भी जानता हो।


शिष्य को भी देख परख कर अपने गुरु का चयन करना चाहिए और एक बार जिसे गुरु मान लिया पूरे विश्वास और श्रद्धा से उसका हर कहा मानना चाहिए।


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