बूढ़े दंपत्ति की दर्दभरी कहानी | very sad hindi story
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यह दर्द भरी कहानी एक कंपाउंडर के नजरिए से आपको सुना रहा हूं। जी हां मैं अस्पताल में काम करने वाला एक कंपाउंडर हु।
जिस अस्पताल में मैं काम करता हूं वहां पर 3 शिफ्ट चलती है। उस दिन मेरी सुबह की शिफ्ट थी जिसका टाइम 9:00 से 5:00 का होता है। हमेशा की तरह मैं सही समय पर अस्पताल पहुंच गया था।
जब मैं अस्पताल के अंदर प्रवेश कर रहा था तो मेरी नजर वैटिंग रूम में बैठे कई लोगों पर पड़ी लेकिन एक बूढ़े दंपति पर जाकर रुक गई।
बूढ़ा और बूढ़ी दोनों आपस में कुछ बातें कर रहे थे। बूढ़ा अपने हाथों में पीठ पीछे कुछ पेपर बूढ़ी से छुपाने का प्रयत्न कर रहा था। बूढ़ी उन पेपरों को बूढ़े से छीनने की कोशिश कर रही थी।
बूढ़ी के आंखों में थोड़ी सी शरारत थी वही बूढ़ा तकरीबन रोने को था और उसकी आंखों में आंसू साफ दिख रहे थे।
बूढ़ा बोला," इन पेपर्स में कुछ भी नहीं है खामखा क्यों ईनके पीछे पड़ी हो?
बूढ़ी ने जवाब दिया," आज तक कभी कोई बात मुझसे छुपा पाए हो मास्टर साहब! वैसे भी एक शिक्षक को झूठ नहीं बोलना चाहिए तो दिखाओ मुझे पेपर्स।"
बूढ़ा फूट फूट कर रोने लगा और बोला," नर्मदा, कैंसर है तुम्हें! एक महीने बाद इस दुनिया में अकेला छोड़कर मुझे चली जाओगी। ये रिटायर्ड मास्टर अपनी जिंदगी भर की कमाई देकर भी तुम्हारे कैंसर की कीमत नहीं चुका पाएगा। "
बूढ़ा अपना सिर पीटते हुए बोला," तुम्हारे कैंसर की कीमत इस बूढ़े रिटायर्ड मास्टर की औकात से कई गुना बडी है, नर्मदा।"
बूढ़ी अपने पति के आंसू पोछते हुए बोली,"तुम्हारी औकात बहुत बड़ी है मास्टर साहब! मुझसे पूछो, जीवन में तुमने मुझे क्या कुछ नहीं दिया है? मेरी हर ख्वाहिश पूरी की है। और ये डॉक्टर तो कुछ भी कहते हैं देखना मैं इतनी जल्दी मरने वाली नहीं हूं ।"
कैंसर के असह्य दुख से गुजर रही बूढ़ी अपने पति के दर्द को कम करने की कोशिश कर रही थी। वह अपने पति को गले से लगाकर कह रही थी कि अभी तो मत रोइए अभी तो मैं जिंदा हूं।
मैंने अपनी आंखों के सामने सैकड़ों मरीजों को देखा है। कईयों ने मेरे सामने दम तोड़ा है उनका दर्द मै समझ सकता था लेकिन कभी उनके लिए मेरे आंखों से आंसू नहीं निकले। लेकिन इस बूढ़े दंपत्ति का दर्द मेरी आंखों से भी आंसू बनकर बह निकला।
इससे पहले कि मैं इस दंपत्ति के पास जाकर उनको हमदर्दी के दो बोल बोल पाता और उनका हौसला बढ़ा पाता डॉ विनायक उनके पास पहुंच गए। शायद वह भी मेरी तरह ही चुपके उनकी बातें सुन रहे थे।
डॉ विनायक उनके पास जाकर बोले देखिए माजी जीवन और मृत्यु का फैसला तो भगवान ही करते हैं हम डॉक्टर्स भी सिर्फ कोशिश ही कर सकते हैं और मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आपको इस बीमारी से अलग कर सकूं।"
तब बूढ़े ने हिचकिचाते हुए कहां,"लेकिन इसका इलाज तो..."
इससे पहले की वह अपना वाक्य पूरा कर पाते डॉ विनायक बोले ,"आप उसकी चिंता मत कीजिए इसकी जिम्मेदारी में लेता हूं।"
बूढ़ी ने डॉ विनायक से पूछा," लेकिन आप यह सब क्यों करेंगे?"
डॉक्टर ने कहा,"मैं तकरीबन 12 साल का था जब मेरी मां ईसी बीमारी का शिकार हो गई थी और मैं तब बेबस और मजबूर था। उन्हें बचाने के लिए मैं कुछ ना कर सका। तभी मैंने ठान लिया था कि मैं डॉक्टर बनूंगा और इस बीमारी से हमेशा लड़ता रहूंगा। अगर मैं आपको इस बीमारी से निजात दिला सका तो मैं समझूंगा कि मेरी मां आप के रूप में कुछ और साल इस धरती पर जिंदा रह पाई।"
मुझे नहीं पता डॉ विनायक उस बूढ़ी के कैंसर को इलाज करके हरा पाए या नहीं लेकिन उस दिन मैंने दोनों बूढ़े दंपत्ति की आंखों में देखा था डॉ विनायक ने उनकी आंखों में पहले दिख रही निराशा को जरूर हरा दिया था और उसमें एक आशा की किरण जगा दी थी।
