ज्ञान बड़ा या व्यवहार.. एक शिक्षाप्रद कहानी | Best Hindi Moral Story
एक बड़े राजा हुआ करते थे। जितने वह पराक्रमी थे उतने ही समझदार भी थे। उन्होंने अपने दरबार में कई ज्ञानी लोगों को अच्छे ओहदे(positions) दे रखे थे। वह सबका काफी सम्मान करते थे लेकिन इन सब में जिनका वह सबसे ज्यादा सम्मान करते थे वह थे उनके राज्य के राजपुरोहित।
राजा राजपुरोहित को कितना मान देते थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब भी दरबार में राजपुरोहित प्रवेश करते तो राजा खुद खड़े होकर उनका स्वागत करते थे और तब तक खड़े रहते थे जब तक राजपुरोहित अपने आसन पर आकर बैठ ना जाए!
राजा अपने मन में उठ रहे सभी सवालों को राजपुरोहित से बेझिझक पूछ लिया करते थे। राजपुरोहित भी अपनी बुद्धि से उनका अच्छे से उत्तर दिया करते थे। 1 दिन दरबार में राजा के मन में कोई प्रश्न आया उन्होंने राजपुरोहित से पूछ लिया,"गुरुजी एक सवाल मेरे मन में कई दिनों से कौंध रहा है अगर आप इजाजत दे तो पूछना चाहूंगा।"
"आप हुकुम कीजिए महाराज"राजपुरोहित ने कहा।
"जैसे कि मैंने बताया कई दिनों से यह सवाल मुझे परेशान कर रहा है मुझे विश्वास है की इसका ऐसा उत्तर जिससे मुझे संतुष्टि मिले केवल आप ही दे सकते है। सवाल ये है की ' ज्ञान बड़ा होता है या व्यवहार ?' " राजा ने पूछा।
राजपुरोहित सोच में पड़ गए। यह सवाल सच में मुश्किल था। ऐसा नहीं है कि उन्हें इस सवाल का उत्तर नहीं मालूम था लेकिन उसे कैसे राजा को सरल तरीके से समझाया जाए यह उनके समझ में नहीं आ रहा था। राजपुरोहित ने विनती कर राजा से कुछ दिनों की मोहलत मांग ली ताकि कोई ऐसा तरीका ढूंढ सके जिससे इस सवाल का उत्तर राजा को संतुष्ट कर पाए।
दरबार खत्म हो गया। राजपुरोहित अपने घर वापस लौट गए ।उस दिन से वो चिंता में रहने लगे। उन्हे समझ नही आ रहा था की कैसे राजा के सवाल का उत्तर दिया जाए? दो-तीन दिन बीत गए लेकिन राजपुरोहित अभी भी इसी कशमकश में थे और वह ना अच्छे से सोते थे, ना ही ठीक से सो पाते थे नाही खा पी पा रहे थे। उनकी पत्नी यह सब देख रही थी सो पत्नी ने राजपुरोहित से उनकी परेशानी का कारण पूछा।
राजपुरोहित ने सारी समस्या अपनी पत्नी से कहीं। उनकी पूरी बात ध्यान से सुनने के बाद उनकी पत्नी ने उन्हें एक उपाय बताया और कहा कि अगर आप ऐसे करोगे तो राजा को आपका उत्तर समझ भी आएगा और संतुष्टि भी मिलेगी।
राजपुरोहित अगले दिन राजमहल गए और कहीं ना जा कर वह सीधे ही राज्य के खजाने के पास पहुंचे और खजाने से दो मोती चुरा लिए। उनको ऐसा करते देख खजांची ने देख लिया। खजांची को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ, उसने सोचा शायद उसको भ्रम हुआ है क्योंकि राजा के इतने खास राजपुरोहित चोरी करे ऐसा कोई भी नहीं मान सकता था। उनके एक बार कहने से राजा उनको बेशुमार धन दौलत दे देता।
अगले दिन राजपुरोहित फिर से खजाने से दो मोती चुरा लाए! फिर से एक बार खजांची ने यह सब देखा अब उन्हें लगा की उन्होंने कल जो देखा था वह कोई भ्रम नहीं था। कोई दूसरा व्यक्ति होता तो तुरंत उसे पकड़कर सजा दे देते। यह तो राजा के खास राजपुरोहित थे, और जितना खजांची राजपुरोहित को जानता था वह तो बड़े भले आदमी है जरूर उन पर कोई मुसीबत आई होगी इसलिए उन्हें ऐसा करना पड़ा होगा यह सोच कर खजांची ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी।
जब दो-तीन दिनों तक फिर यही घटना दोहराई गई तब खजांची ने अपना धर्म निभाते हुए इस चोरी की खबर राजा तक पहुंचा दी। राजा को पहले तो बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ। लेकिन खजांची ने जब पूरी बात बताई की कैसे राजपुरोहित जी एक नहीं, दो नहीं ,लेकिन पिछले एक हफ्ते से खजाने से मोतियों की चोरी कर रहे हैं। इस बात को खजांची ने इतना जोर देकर और कसम खाकर कहा था कि राजा को भी अब उसकी बातों पर विश्वास हो गया।
अगले दिन जब राजपुरोहित दरबार में आया तब राजा ने नाही उनका स्वागत किया ना ही अपनी जगह से खड़े हुए! राजा ने राजपुरोहित से पूछा," क्या आप खजाने से मोतियों की चोरी कर रहे हैं?"
राजपुरोहित ने हां कहा और सारे मोती राजा के सामने रखते हुए कहा कि लीजिए यह सारे मोती जो मैंने चुराए है!
राजपुरोहित का ऐसा व्यवहार देखकर राजा के साथ दरबार में बैठे सभी लोग आश्चर्यचकित थे। राजा ने राजपुरोहित से कहा," अगर आपको यह मोती लौटआने ही थे तो आपने चुराए ही क्यों?"
राजपुरोहित ने राजा की माफी मांगते हुए कहा," महाराज मैं चोर नहीं हूं। मैंने यह सब इसीलिए किया क्योंकि आपने कुछ दिनों पहले मुझसे जो प्रश्न किया था उसका संतुष्टि भरा उत्तर आपको दे सकूं।
जैसे कि यहां उपस्थित सभी लोगों ने यह देखा कि आज महाराज ने नाही मेरा स्वागत किया और ना ही पहले की तरह मुझे इज्जत दी। जबकि अभी भी मेरे पास उतना ही ज्ञान है जितना पहले था बस कुछ बदला था तो मेरा व्यवहार। इससे यही साबित होता है कि आपके पास चाहे जितना ज्ञान हो अगर आपका व्यवहार अच्छा नहीं है तो सब व्यर्थ है। इसलिए व्यवहार सबसे बड़ा है ज्ञान नहीं।"
राजा राजपुरोहित की बातों से और उनके द्वारा दिए गए इस अनोखे उत्तर से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने आज जैसा व्यवहार राज पुरोहित के साथ किया था उसके लिए माफी मांगी और एक बड़ा इनाम उन्हें दिया।
दोस्तों, आज की इस शिक्षाप्रद कहानी से मिलने वाली सीख को हमें अपने जीवन में इंप्लीमेंट करना चाहिए। हम चाहे जितनी पुस्तके पढ़ ले, अच्छे वीडियोस देख ले, आर्टिकल पढ़ ले या जितना नॉलेज प्राप्त कर ले लेकिन अगर हम उन्हें अपने जीवन में अपने व्यवहार में नहीं लाते हैं तो सब व्यर्थ है।
