दादी की पहली सैलरी.. पारिवारिक कहानी| Parivarik kahani

 लंबे जीवन में कुछ घटनाएं कुछ अवसर ऐसे होते हैं जो बहुत खास होते हैं.. जैसे कि पहली बार विदेश जाना,पहला प्यार, पहली जीत या फिर पहली सैलरी। आज की कहानी दादी की पहली सैलरी भी उतनी ही खास है। इस पारिवारिक कहानी से आप पूरी तरह से जुड़ पाएंगे इसलिए इसे पूरी पढ़िएगा।


दादी की पहली सैलरी.. पारिवारिक कहानी| Parivarik kahani 


दादी की पहली सैलरी.. पारिवारिक कहानी| Parivarik kahani



विनोद ड्राइंग रूम में बैठकर टीवी देख रहा था। मनीषा और सरला देवी दोनों किचन में थे। 

मनीषा बर्तन मांज रही थी सरलादेवी सुबह के नाश्ते की तैयारी में लगी थी। 9 साल की पिंकी स्कूल जाने की तैयारी कर रही थी।


विनोद ने ड्राइंग रूम से ही ऊंची आवाज में कहा," मनीषा तुम्हारा पगार आ गया है? अगर आ गया है तो इस महीने की ईएमआई तुम भर देना। मेरी सैलरी आने को अभी वक्त लगेगा।"


मनीषा ने किचन से ही सहमति जताई,"जी जरूर भर दूंगी।"


इस बातचीत से पिंकी के कान खड़े हो गए क्योंकि कल ही तो उसके स्कूल में सैलरी के बारे में सबको समझाया गया था। जिसमें बताया गया था कि हर काम के लिए एक निश्चित रकम मिलती है जिसे सैलरी कहते हैं। इस बात की याद आते ही वह तुरंत किचन में दौड़ी।


उसको ऐसे अचानक दौड़ते देख विनोद भी उसके पीछे-पीछे गया। पिंकी ने अपनी दादी के पास जाकर उनसे पूछा," दादी आप को सैलरी नहीं मिलती है क्या?"


विनोद और मनीषा एक दूसरे की तरफ देख कर मंद मंद मुस्काए। सरला देवी ने पिंकी को समझाते हुए कहा,"बच्चा, तुम्हारे मम्मी पापा ऑफिस जाते हैं इसलिए उन्हें सैलरी मिलती है। मैं तो घर पर ही रहती हूं ना इसलिए मुझे सैलरी नहीं मिलती।"


पिंकी को यह बात कुछ समझ नहीं आई तो वह बोली," दादी आप भी तो कितना सारा काम करती है। सुबह जल्दी उठकर नाश्ता बनाना, खाना बनाना, पूरे घर की साफ सफाई करना, कपड़े धोना मुझे ट्यूशन पढ़ाना और बाजार जाकर राशन लाना और तरकारी लाना...और भी पता नहीं क्या क्या?


आपके इन्हीं सभी कामों की वजह से तो पापा और मम्मी निश्चिंत होकर काम पर जा पाते हैं और मैं भी स्कूल में अच्छे नंबरों से पास हो पाती हूं। तो क्या इन कामों की कोई वैल्यू नहीं है?"


पिंकी की बातें सुनकर कुछ पलों के लिए सब शांत हो गए। 9 साल की एक छोटी सी बच्ची जो सोच रही थी वह गलत नहीं था। विनोद और मनीषा के पास इसका कोई जवाब नहीं था मगर सरला देवी के पास था। वह बोली," किसने कहा मुझे सैलरी नहीं मिलती? मुझे पैसो के रूप में, कागजों के रूप में सैलरी नहीं मिलती लेकिन मुझे जिस रूप में सैलरी मिलती है उसकी कीमत कोई आंक ही नहीं सकता!


मैं घर की जिम्मेदारी संभालती हूं तो मुझे तुम्हारी मम्मी एक दोस्त के रूप में मदद करती है। तुम्हारी मम्मी की दोस्ती मेरे लिए वह सैलरी है। मुझे पैसों की जरूरत होती है और मैं तुम्हारे पापा को बोलती हूं तो बिना यह जाने कि मैं उनका क्या करूंगी वह मुझे झट से पैसे निकाल कर दे देते हैं। तुम्हारे पापा का यह विश्वास मेरी सैलरी है! और तुम जो मुझे इतना प्यार करती हो मेरे बारे में इतना सोचती हो वह तो मेरा बोनस है! अब बताओ क्या मुझे किसी से कम सैलरी मिलती है?"


दादी की बातें सुन पिंकी  खुश होकर दादी के गले से लगते हुए बोली,"अरे वाह दादी आप तो बहुत अमीर है।" सबके चेहरों पर बड़ी मुस्कान आ गई।


मनीषा सरला देवी के पास आई, उनका हाथ पकड़ कर बोली,"  मम्मी जी, हमने कभी इस बारे में सोचा ही नहीं लेकिन आपको कभी इस बारे में विचार नहीं आता की आपको भी सैलरी मिलनी चाहिए?"


"कभी कभार! वह भी जब तुम लोगों को कुछ खरीद कर देना होता है तब थोड़ा सा बुरा लगता है।" सरला देवी ने हिचकी चाहते हुए कहा।


पिंकी बीच में ही बोल पड़ी," तभी तो मैं आपसे कह रही थी दादी आप ट्यूशन शुरू कर दीजिए।"


विनोद और मनीषा सरला देवी की तरफ देखने लगे," यह क्या माजरा है मम्मी!"विनोद ने पूछा।"अरे कुछ नहीं बेटा ये पिंकी तो बस बातें बनाती है।"सरला देवी ने बात को टालने की कोशिश की।


"नहीं पापा मैं आपको पूरी बात बताती हूं। मेरी फ्रेंड रिंकू है ना, उसकी मम्मी एक बार मुझसे पूछ रही थी कि तुम हमेशा क्लास में अव्वल आती हो। हर विषय में अच्छे मार्क्स आते हैं, तुम कौन सी ट्यूशन क्लास से ट्यूशन लेती हो? मुझे भी बताओ ताकि रिंकू को भी वही भेज सकूं।


जब मैंने उनसे कहा कि मुझे तो मेरी दादी ही पढ़ाती है तो उन्हे बहुत आश्चर्य हुआ!  फिर अगले दिन तो वह हमारे घर ही आ गई थी और दादी से मिलकर उन्हें रिंकू और उसके साथ तीन-चार और बच्चों को ट्यूशन देने के लिए कह रही थी। लेकिन दादी ने मना कर दिया। दादी हा भी कैसे करती उनके पास दिनभर इतना सारा काम जो रहता है।"पिंकी ने सारी बात खुलकर कहीं।


विनोद बोला," अरे मां आपको ट्यूशन पढ़ाना चाहिए! यह बात तो पक्की है कि आप पढ़ाती बहुत अच्छा है। देखिए मुझे भी तो आपने ही पढ़ाया था, उसी की बदौलत मैं इतनी अच्छी नौकरी पर हूं आज। और रही बात घर के कामों की तो हम उसके लिए एक कामवाली रख देंगे आप अपना वक्त ट्यूशन पढ़ाने के लिए दीजिए।"


सरला देवी ने थोड़ी आनाकानी की लेकिन बेटा,बहू और पोती ने मिलकर उन्हें आखिरकार ट्यूशन चलाने के लिए मना ही लिया। एक महीना बीत गया। सरला देवी ने उनके बहू बेटे और पोती को एक अच्छे रेस्टोरेंट में अपने पैसों से खाना खिलाया। उस दिन सरला देवी की आंखों में रिश्तो की कमाई के साथ अपनी पहली कमाई की खुशी और संतोष चमक रहा था।


दोस्तों माना कि जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं होता लेकिन थोड़ा सा पैसा जो अपनों के लिए खर्च किया जाए और उससे जो खुशी मिलती है उसकी बात ही कुछ और होती है।


हमेशा की तरह इस थोड़ी सी इमोशनल और थोड़ी मोटिवेशनल हिंदी कहानी को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद ऐसी ही नई-नई प्रेरक कहानियां आप अपने व्हाट्सएप पर पढ़ सकते हैं..इसके लिए आपको हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ना पड़ेगा।


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