जिस तरह से मृत्यु अटल है, जितनी मृत्यु सच है उतना ही सच है बुढ़ापा। हर वह आदमी या वस्तु जिसका जन्म होता है उसका नाश होने से पहले वह पुरानी या बूढ़ी भी होती है और आज की ये " बुढ़ापा ..एक इमोशनल कहानी" इसी सत्य पर आधारित है।
बुढ़ापा..एक इमोशनल कहानी | Very Emotional Hindi Story
हर रोज की तरह दिनेश लाल जी अपने शाम के शेर सपाटे से लौट आए थे। वह अपने जूते उतार ही रहे थे की बहू ने पूछा," बाबू जी आज हम पार्टी में जा रहे हैं। हम वही से खा कर आएंगे, आज रात के खाने में क्या खाएंगे? बताइए।"
दिनेश लाल जी सोचने लगे आज रविवार तो नहीं है, और ना ही किसी की शादी है जरूर किसी पार्टी में जा रहे होंगे.. छोड़ो मुझे क्या? मुझे क्या करना है इस उम्र में! अपने विचारों पर काबू करते हुए दिनेश लाल जी बोले..," ऐसा करो बेटा मेरे लिए दो रोटियां बना दो दूध के साथ रोटिया ही खाऊंगा।"
बहुत तुरंत बोल उठी ,"बाबूजी सुबह ही जो बनाई थी उनमें से 2 रोटियां अभी भी बची हुई है, अगर आप..."बहु ने अपना वाक्य अधूरा ही रहने दिया लेकिन दिनेश लाल जी अच्छी तरह समझ गए कि वह क्या कहना चाहती थी।
सुबह की रोटीया खाई तो गैस हो जाएगा। सुबह भी बहुने मसाले वाली सब्जी ही बनाई थी जिसके चलते अभी तक खट्टी डकारें आ रहे हैं और इस उम्र में पेट को संभालना मतलब किसी बिगड़े हुए बच्चे को संभालने से भी ज्यादा कठिन काम! बाबूजी बहू से बोले," नहीं बेटा इस उम्र में सुबह की रोटी या नहीं खा सकता। तुम्हे थोड़ी तकलीफ होगी लेकिन मेरे लिए दो ताजी रोटी बना दो।"
बहू को बहुत गुस्सा आया। वो गुस्से में ही बड़ बड़ाते हुए उठी ,"अब दो रोटियां बनाओ या 10 काम तो उतना ही बढ़ेगा! आटा गुडों, रोटियां बनाओ, किचन और बर्तन साफ करो। इन्हे क्या है इन्हें सिर्फ ऑर्डर देना है काम तो मुझे करना पड़ता है ना। बस दिन रात इनकी ही सेवा करते रहो।"
बहू के बोल दिनेश लाल के गानों पर पढ़ रहे थे। हे भगवान ... सिर्फ दो रोटियां बनाने में इतनी तकलीफ? मैंने कोई पांच पकवान तो मांगे नहीं थे! उन्हें बहुत गुस्सा आ गया लेकिन गुस्सा वहां किया जाता है जहां कोई सुनने वाला हो। उन्होंने अपना गुस्सा निगल लिया। अब तो उन्हें जितनी जल्दी गुस्सा आता था उससे जल्दी चला भी जाता था।
दिनेश लाल जी को अपनी पत्नी की बहुत याद आई। निर्मला के जीते जी उन पर कभी बासी रोटी खाने की नौबत नहीं आई थी उल्टा खाने में 10 चीजें और मिल जाती थी। खाने के साथ मीठा ,पापड़, आचार ,दही ,छास, सलाद और पता नहीं क्या-क्या! दिनेश जी को बहुत बुरा लग रहा था,"रहने दो बहू मैं सुबह की रोटी ही खा लूंगा। फिजूल में तुम्हें तकलीफ होगी और वैसे भी तुम्हारे हाथों की रोटी बहुत मुलायम होती है, मुझे चलेगा। मेरी वजह से तुम लोगों को देर नहीं होनी चाहिए।"
बहू को तो सोने से पीला मिल गया, वह अपने आवाज मीठी करते हुए बोली ,"बाबूजी आप चाय लेंगे क्या? दिनेश लाल जी अपने चाय पीने की इच्छा को दबाते हुए बोले," वैसे कोई खास इच्छा नहीं है चाय पीने की.. मगर तुम अपने लिए बना रही हो तो मेरे लिए भी थोड़ी बना देना!"
"हां बाबू जी मैं अपने लिए बनाने वाली हूं ,आपके लिए भी बना देती हु।" बोलकर बहू रसोईघर के अंदर चली गई।
दिनेश लाल जी खुद से ही बातें करने लगे" अभी तो लाखों की जायदाद है मेरे पास। यह घर भी मेरे नाम पर है और खाते में भी लाखों रुपए पड़े हैं। कभी बेटा विषय निकालता है तो मैं बोल कर टाल देता हूं कि मेरे बाद तेरा ही तो है सब कुछ और फिर भी एक कप चाय और दो ताजी रोटियों के लिए तरसना पड़ता हो तो उन बूढ़ों का क्या होता होगा जिनके पास संपत्ति के नाम पर शिवा पुरानी यादों के कुछ भी नहीं होता! निर्मला को याद करके दिनेश लाल की आंखों में आंसू चमकने लगे और धीरे से गालों पर सरके।
निर्मला के होते हुए उन्होंने घर का कोई भी काम नहीं किया था। आर्थिक जवाबदारीओके अलावा उनकी और कोई जवाबदारी नहीं थी। उनके व्यापार ने भी उन्हें अच्छा साथ दिया था। वह भी निर्मला से बहुत प्यार करते थे लेकिन कभी जता या बता नहीं पाए। वह यह सच्चे दिल से मानते थे कि निर्मला उनकी किसी पूर्व जन्मों के पुण्य का फल है। लेकिन जिंदगी की भाग दौड़ में वह निर्मला की मन की इच्छाएं पूरी कर ना सके। उन्हें वैष्णो देवी जाना था लेकिन हर बार यह यात्रा अगले साल के लिए पोसपोंड हो जाती। घर बार और संसार की जिम्मेदारियां संभालते संभालते कब उनकी इच्छाए उन्हीं के साथ चली गई पता ही नहीं चला।
दिनेश लाल जी ने देखा उनके पोता और पोती दोनों ही स्कूल से आ गए थे। दोनों ने अपना बस्ता सोफे पर फेंका और दादा जी की तरफ दौड़ कर उनके गले लगते हुए कहने लगे," चलिए ना दादाजी खेलने चलते हैं।"
यही निस्वार्थ प्रेम के कुछ पल थे जिनमें दिनेश लाल जी भी बच्चों के साथ बच्चे बन जाते थे और सारे अपने दुख और यादें भूल जाते थे।
वह कुछ बोल पाते उससे पहले ही बहू ने कहा चलो छोड़ो दादा जी को हमें पार्टी में जाना है जल्दी से आ कर तैयार हो जाओ पापा भी आते ही होंगे।
दोनों ही बच्चे दादाजी को छोड़ मम्मी की तरफ भागे। उनकी पोती 7 साल की थी और पोता 5 साल का था।
दिनेश लाल जी अपनी सोच में डूबे हुए बालकनी की तरफ गए। बालकनी में धीमी ठंडी पवन में उनका स्वागत किया। बहू उनके लिए चाय बनाकर लेकर आई। बालकनी में रखी अपनी कुर्सी पर बैठकर दिनेश लाल जी घुट घुट करके चाय पी रहे थे.. पी क्या रहे थे निगल रहे थे क्योंकि चाय के नाम पर सिर्फ कम शक्कर वाला गर्म पानी था ना इलायची ना अदरक। दिनेश लाल जी मन ही मन सोचने लगे बहू के जाने के बाद आज खुद अपने हाथों से चाय बनाऊंगा इलायची अदरक और थोड़ी सी ज्यादा शक्कर डालकर और उसके साथ रोटियां खा लूंगा रोटीया खाऊंगा! रोटियोकी याद आते ही उनका मुंह फिर खट्टा हो गया।
चाय खत्म होने पर खाली कप लेकर वह किचन में रखने गए तो वहां देखा के बहू और बच्चों का कप धोखे पड़ा था उन्होंने भी अपना कब धोकर रख दिया और अपनी डायरी लेकर बालकनी में आ गए।
बालकनी में बैठे-बैठे उनकी नजर सूखी हुई तुलसी के पौधे पर गई उन्होंने एक लोटा पानी लाकर उसमें डाल दिया। कुछ मिनटों बाद ध्यान से देखने पर उन्हें पता चला कि सूखे हुए तुलसी के पौधे में नई कुपले जैसे मुस्का रही हो। टुडे याद आया कि निर्मला हर सुबह तुलसी को पानी और शाम को दिया दिखा दी थी। अब तो शाम को ना तुलसी को ना ही भगवान के मंदिर में दिया जलता है पता नहीं कितने संस्कार इतनी अच्छी आदतें निर्मला अपने साथ ले गई थी।
दिनेश लाल आसमान की तरफ देख कर बोले," शकुंतला मुझे और इस घर को अभी तुम्हारी जरूरत थी। तुम क्यों हमें छोड़कर चली गई! तुमने मुझे धोखा दिया, तुमने हमेशा साथ रहने का वचन तोड़ दिया। तुम मुझे अकेला छोड़ कर चली गई" दिनेश लाल की आंखें भर आई।
"पापा इतनी ठंडी हवाएं बह रही है और आप है की बालकनी में बैठे हैं! अंदर आ जाइए नहीं तो बीमार हो जाएंगे।" बेटे ने दिनेश लाल जी से कहा।
बेटा बहू और पोता पोती सब तैयार होकर पार्टी के लिए निकल रहे थे। किसी ने झूठ मुठ ही मन रखने के लिए भी उनसे नहीं पूछा कि साथ चलिए।
"बाबा आप खाना खाकर जल्दी सो जाइएगा। हमें आने में जरा देर हो जाएगी। ज्यादा देर तक जागना आपकी सेहत के लिए अच्छा नहीं है। हमारे पास घर की दूसरी चाबी है। हमारी चिंता मत कीजिए।" बेटे नहीं जाते हुए कहां।
ऐसे बोल रहे हैं जैसे मेरी सेहत की बहुत फिक्र है! कितने दिनों से बोल रहा हूं डॉक्टर के पास ले चलो। बीपी बढ़ा हुआ है, शुगर भी चेक करवाना है। थोड़ा सा भी चलता हूं तो हांफने लगता हूं।.. बेटा कहता है कि बुढ़ापे में यह सब तो होता ही है ज्यादा भ्रम मत पालिए! वाह बेटा! बूढ़े बाप के पास बैठने के लिए थोड़ा सा भी टाइम नहीं है तेरे पास और पार्टी के लिए टाइम ही टाइम है ऐसे अनगिनत विचार उनके दिमाग में चल रहे थे लेकिन फिर भी उन्होंने हां में सिर हिलाया।
सभी पार्टी में चले गए। दिनेश लाल जी हॉल में रखे कुर्सी पर आकर बैठे। खाना खाने की अभी कोई इच्छा थी नहीं इसलिए टीवी चालू की। आज वैलेंटाइन डे था,प्यार का दिन इसलिए टीवी पर भी उसी के बारे में दिखा रहे थे। दिनेश लाल जी की नजर पास में रखें अपनी पत्नी की फ्रेम पर गई जिसने लाल कलर की साड़ी पहन रखी थी।
प्यार तो उन्होंने भी खूब किया था निर्मला जी से, पूरी जिंदगी किया था, जी जान से किया था लेकिन कभी बोल नहीं पाए। टीवी पर दिखा रहे थे लोगों ने लाल कपड़े पहन रखे थे। हाथों में लाल फूलों के गुच्छे लेकर वह ग्रीटिंग कार्ड्स की खरीदी कर रहे थे। पता नहीं दिनेश लाल जी के मन में क्या आया उन्होंने अपने पैसों का बटवा लिया और निकल पड़े।
निर्मला जी के याद में चलते चलते वो एक आइसक्रीम पार्लर के पास पहुंचे। उनको श्वास चढ़ गया था। उनके सांसो की गति तेज हो गई थी। आइसक्रीम पार्लर के पास एक कुर्सी पर वह आकर बैठे तभी वहां पर एक छोटी बच्ची आई जो गुब्बारे बेच रही थी। बच्ची बोली," दादाजी गुब्बारे लोगे क्या? इतने ही बचे हैं बिक जाएंगे तो जल्दी घर चली जाऊंगी।"
दिनेश लाल जी ने देखा 10 12 रंग बिरंगे गुब्बारे थे। उन्हें याद आया कि निर्मला जी को भी गुब्बारे बहुत पसंद थे लेकिन अब गुब्बारे लेकर क्या करूं? उन्हे बच्ची की आंखों में सच्चाई और आशा दिखी उन्होंने ₹200 दिए और सारे गुब्बारे खरीद लिए।
उन्हें फिर से निर्मला जी की याद आई क्योंकि वह भी घर से निकलते समय हमेशा थोड़े एक्स्ट्रा पैसे लेकर निकलती थी और किसी ना किसी जरूरतमंद की मदद किया करती थी। कभी वो टोकते तो वह कहती हमें भगवान ने लेने वालों के नहीं देने वालों की लाइन में खड़ा किया है और थोड़े से रुपयों के बदले में लाखों की दुआएं मिलती है तो मुझे टोका मत कीजिए।
आंखों में आंसुओं के साथ दिनेश लाल जी खड़े हुए रास्ते के बीचो बीच आए। उन्होंने आसमान की तरफ देखा,अपने हाथों में पकड़े गुब्बारे आसमान में छोड़ दिए और चिल्लाकर बोले निर्मला मैं तुमसे प्यार करता हूं।
उनके सांसों गति बढ़ गई। उनका शरीर लड़खड़ाया और जमीन पर धड़ से गिर पड़े आसपास के लोगों को कुछ भी पता चल पाए उससे पहले ही दिनेश लाल जी ने इस मोह माया की दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्हें अपनी पत्नी से मिलने की बहुत जल्दी थी।
हमेशा की तरह पूरी कहानी पढ़ने के लिए आपको धन्यवाद ! यह कहानी जरूर आपके दिल को छू गई होगी। ऐसे ही सीधे दिलों में उतरने वाली कहानियां पढ़ने के लिए आप हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं।
