अद्भुत कहानी : मां लक्ष्मी की कहानी | lakshi mata story
दोस्तों हिंदुओ में अनगिनत देवी और देवताए है। वैसे तो हिंदू सभी देवी देवताओं को पूरे मन से पूजते है लेकिन लक्ष्मी माता से हर भारतीय के मन में अलग ही स्थान होता है आखरी माता लक्ष्मी धन (पैसों) की देवी जो है! आज की कहानी माता लक्ष्मी के सभी भक्तों को समर्पित करता हूं .. आशा है आप कहानी पूरी पढ़ेंगे और आपको पसंद आएगी।
मां लक्ष्मी की कहानी | lakshi mata story
एक बार वैकुंठ लोक में भगवान विष्णु जी अपने आसन शेषनाग पर बेठे बेठे ऊब गए तो उन्होंने सोचा चलो पृथ्वीलोक घूम कर आता हूं। वेसे भी कई साल बीत गये थे धरती पर गए इसलिए वो फटाफट अपनी यात्रा की तैयारी करने लगे ।
विष्णु जी को तैयार होता देख को लक्ष्मी जी उनसे पुछा : आज सुबह सुबह कहा जाने कि तैयारी हो रही है स्वामी ??
विष्णु जी ने कहा : हे प्रिये मै पृथी लोक पर घुमने जा रहा हु। तो कुछ सोच कर लक्ष्मी ने कहा : हे भगवन् क्या मै भी आप के साथ चल पृथ्वीलोक आ सकती हूं?
विष्णुजी ने दो पल सोचा फ़िर कहा : एक शर्त पर,तुम मेरे साथ चल सकती हो। तुम पृथ्वी पर पहुच कर उत्तर दिशा की ओर नही देखोगी!
लश्मी जी के मन में आया की प्रभु ऐसी शर्त क्यों रख रहे है? लेकिन ज्यादा प्रश्न करनी पर वो नाराज़ होंकर उन्हे ले जाने से कहीं मना न करदे इसलिए लक्ष्मीजी ने हां कह अपनी बात मनवाली।
ओर सुबह सुबह मां लक्ष्मी ओर भगवान विष्णु धरती पर पहुच गये।तब सूर्योदय हो रहा था, रात बरसात हो कर हटी थी, चारो ओर हरियाली ही हरियाली थी, उस समय चारो ओर बहुत शान्ति थी, ओर धरती बहुत ही सुन्दर दिख रही थी।
सफर के दौरान मां लक्ष्मी मन्त्र मुग्ध हो कर धरती को देख रही थी और इन सब में वो भुल गई कि पति को क्या वचन दे कर आई है?लक्ष्मी जी चारो चारो ओर देखते देखते कब उत्तर दिशा की ओर देखने लगी पता ही नही चला।
उत्तर दिशा मै मां लक्ष्मी को एक बहुत ही सुन्दर बगीचा नजर आया, ओर उस तरफ़ से भीनी भीनी खुशबु आ रही थी, ओर बहुत ही सुन्दर सुन्दर फ़ुल खिले थे। वहां एक फ़ुलो का खेत था, मां लक्ष्मी बिना सोचे समझे उस खेत मे चलीं गई और एक सुंदर सा फ़ुल तोड लाई!
लेकिन यह क्या जब मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के पास वापिस आई तो भगवान विष्णु की आंखो मै आंसु थे!
भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी से कहा : कभी भी किसी से बिना पुछे उस का कुछ भी नही लेना चाहिये ओर किसी को दिया वचन भी नही तोड़ना चाहिए।
मां लक्ष्मी को अपनी भुल का पता चला तो
उन्होने भगवान विष्णु से इस भुल की माफ़ी
मागी। भगवान विष्णु ने कहा : मना की तुम मेरी प्रिय जो फिर भी जो तुम
ने भुल की है उस की सजा तो तुम्हे जरुर
मिलेगी? जिस माली के खेत से तुमने बिना
पुछे फुल तोडा है, जो की एक प्रकार की चोरी ही है,
इस लिये अब तुम तीन साल तक माली के घर
नोकर बन कर रहो! उस के बाद मै तुम्हे बैकुण्ठ
मे वपिस बुलाऊंगा। मां लक्ष्मी ने चुपचाप सर
झुका कर हां कर दी
मै।
( आप भी सोच रहे होंगे ..आज कल की लक्ष्मी थोडे
थी?)
उस दिन से मां लक्ष्मी एक गरीब ओरत का रुप धारण करके उस खेत के मालिक के घर गई। घर क्या एक झोपडा था! मालिक का नाम माधव था। घर में माधव की बीबी, दो बेटे ओर तीन बेटिया थी। सभी उस छोटे से खेत मै काम करके किसी तरह से गुजारा करते थे।
मां लक्ष्मी जब एक साधारण ओर गरीब ओरत बन कर जब माधव के झोपडे पर गई तो माधव ने पुछा बहन तुम कोन हो ? मुझसे इस समय तुम्हे क्या चाहिये? तब मां लक्ष्मी ने कहा, मै एक गरीब ओरत हूं, मेरी देख भाल करने वाला कोई नही, मेने कई दिनो से खाना भी नही खाया, मुझे कोई भी काम देदो।इसके बदले मै तुम्हारे घर का काम भी कर दिया करुगी, बस मुझे अपने घर मै एक कोने मै आसरा दे देना ?
माधाव गरीब जरूर था किंतु बहुत ही अच्छे दिल का मालिक था। उसे दया आ गई, लेकिन उस ने कहा, बहिन मै तो बहुत ही गरीब हुं, मेरी कमाई से मेरे घर का खर्च मुश्किल से चलता है, अगर मेरी तीन की जगह चार बेटिया होती तो भी मेने गुजारा करना था, अगर तुम मेरी बेटी बन कर जेसा रुखा सुखा हम खाते है उस मै खुश रह सकती हो तो अन्दर आ जाओ।
माधाव ने मां लक्ष्मी को अपने झोपडे में शरण देदी! मां लक्ष्मी तीन साल उस माधव के घरपर नोकरानी बन कर रही! जिस दिन मां लक्ष्मी माधव के घर आई थी उससे दुसरे दिन ही माधाव को फ़ुलो से इतनी आमदनी हुयी की उसने शाम को एक गाय खरीद ली! फ़िर धीरे धीरे माधव ने काफ़ी जमीन खारीद ली! उसने सब के लिए अच्छे अच्छे कपडे भी बनबा लिए। एक बड़ा पक्का घर भी बनबा लिया। बेटियो ओर बीबी को गहने भी खरीद कर दिए और उसके घर शरण लेकर रह रही लक्ष्मी जी को भी उसने वो सब दिया जो अपनी बेटियो को दिया था।
पहले से कई ज्यादा सुखी और समृद्धि माधव के मन में हमेशा ये ख्याल आता था कि मुझे यह सब इस महिला के शुभ कदम मेरी झोपडी में पड़ने के बाद मिला है। इस महिला ने एक बेटी के रुपमे मेरे जीवन में आकर मेरी किस्मत ही बदल दी!
3 साल लगभग बीत गये थे, लेकिन मां लक्ष्मी अब भी घर मै ओर खेत मै काम करती थी, एक दिन माधव जब अपने खेतो से काम खत्म करके घर आया तो उस ने अपने घर के सामने के द्वार पर एक देवी स्वरुप गहनो से लदी एक ओरात को देखा। ध्यान से देख कर पहचान गया अरे यह तो मेरी मुहं बोली चोथी बेटी यानि वही ओरत है! वो पहचान गया कि यह तो मां लक्ष्मी है!
अब तक माधव का पुरा परिवार बाहर आ गया था और सब हेरान हो कर मां लक्ष्मी को देख रहै थे। माधव बोला : है मां हमे माफ़ कर दीजिए। हम ने आप से अंजाने मै ही घर ओर खेत मे काम करवाया है। मां यह केसा अपराध होगया, है मां हम सब को माफ़ कर दो।
मां लक्ष्मी मुस्कुराई ओर बोली : है माधव तुम बहुत ही अच्छे ओर दयालु व्यक्ति ह। तुम ने मुझे अपनी बेटी की तरह से रखा। अपने परिवार के सदस्या की तरह से मान दिया। इस के बदले मै तुम्हे वरदान देती हूं कि तुम्हारे पास कभी भी खुशियो की ओर धन की कमी नही होगी। तुम्हे वो सारे सुख मिलेगे जिस के तुम हकदार ह। फ़िर
मां अपने स्वामी के द्वारा भेजे रथ मे बेठकर वैकुंठ चली गई।
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