नसीब का खेल : मजेदार हिंदी कहानी | Majedaar hindi kahani

नसीब का खेल : मजेदार हिंदी कहानी | Majedaar hindi kahani 


 दोस्तों, कुछ लोग कहते हैं कि नसीब में होगा तो मिलेगा। कुछ लोगों का मानना है कि नसीब खुद बनाना पड़ता है। नसीब में ना मानने वालों की संख्या बहुत बड़ी है लेकिन शायद उससे भी ज्यादा संख्या नसीब को मानने वालों की है। खासकर हमारे देश भारत में तो काफी ज्यादा है। 


आज नसीब के बारे में इतनी बातें इसलिए क्योंकि आज की कहानी जिसका शीर्षक है नसीब का खेल उसी विषय पर आधारित है।


नसीब का खेल : मजेदार हिंदी कहानी | Majedaar hindi kahani



नसीब का खेल : मजेदार हिंदी कहानी | Majedaar hindi kahani 


कई सालों पहले तीन दोस्त हुआ करते थे। दीपक, राजू और श्याम ये तीनों के नाम थे। दीपक और राजू अच्छे खासे धनवान परिवार से ताल्लुक रखते थे। शाम बेहद गरीब और साधारण परिवार का था।


 पैसों के मामले में इतनी असमानताएं होने के बावजूद तीनों की दोस्ती ऐसी थी कि वह एक दूसरे के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते थे।दोनों धनवान दोस्तों ने अपने गरीब दोस्त की परिस्थिति बदलने के लिए उसकी कई बार मदद की थी लेकिन उसकी परिस्थिति में कोई भी बदलाव नहीं होता था!


 वह कहते हैं ना की समय से पहले और नसीब से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता बस ऐसा ही कुछ श्याम के साथ होता था।


तीनों ही जवान हो गए। दोनों धनवान दोस्त अपना अपना व्यापार अच्छे से करने लगे और पहले से भी ज्यादा धनवान बनते चले गए।


 शाम की हालत बद से बदतर होती गई। अपने दोस्त की बिगड़ती हुई हालत देखकर दीपक और राजू ने उसके लिए कुछ करने का फैसला किया। दोनों ने सो सो सोने के सिक्के एक थैली में रखें और शाम को देते हुए कहा तुम इनसे कोई व्यापार शुरू करो और पैसे कमाओ और अपनी गरीबी दूर करो।


श्याम ने उन 200 सिक्कों में से 5 सिक्के घर खर्च के लिए निकालें और बाकी के 195 सिक्के अपनी पगड़ी में बांधकर शहर की तरफ जाने लगा ताकि वहां जाकर व्यापार के लिए कुछ जरूरी चीजें ला सके।


 वो गांव से कुछ दूर ही पहुंचा था कि आसमान से एक चील उड़ती हुई आई और उसकी पगड़ी उड़ा कर ले गई! श्याम ने उसका काफी पीछा किया लेकिन चील इतनी ऊंची और तेज उड़ी की उसको आखिरकार हार मान कर अपने घर लौटना पड़ा।


कुछ दिन बीतने के बाद जब दीपक और राजू श्याम की हालत का जायजा लेने के लिए उसके घर गए तो उन्हें शाम की हालत में रत्ती भर का भी फर्क नजर नहीं आया। पूछने पर शाम में सारी हकीकत दोनों को बता दी। राजू को उसकी बातों पर भरोसा नहीं हुआ लेकिन दीपक ने उसका विश्वास कर लिया। दीपक ने फिर से उसे  200 सोने के सिक्के दिए और बोला फिर से कोशिश करो।


 दीपक और राजू के जाने के बाद श्याम ने सोचा कि अभी काफी रात हो गई है इसलिए सिक्को को कही छुपा देता हु ताकी कोई चोर उन्हे चुरा ना सके। कल शहर जाकर कोई धंधा शुरू करूंगा। उसने उन सिक्कों को अपने घर में रखी भूसे की एक टोकरी में छुपा दिया।


शाम सुबह नींद से जागा और सीधा उस भूसे की टोकरी की तरफ गया जहां उसने सिक्के छुपाए थे। उसने घर में काफी ढूंढा लेकिन उसे वह भूसे की टोकरी कहीं नहीं दिखाई दी! उसने अपनी मां से पूछा तो मां ने बताया कि उसे सब्जी खरीदनी थी और घर में पैसे नहीं थे इसलिए उसने उस भूसे की टोकरी के बदले सब्जी खरीद ली! शाम आखिर करता भी क्या वह अपनी किस्मत को कोसता रह गया।


फिर से कुछ दिनों बाद दीपक और राजू श्याम को मिलने आए तब भी उन्हें उसकी की परिस्थिति बदली हुई नजर नहीं आई। बल्कि इस बार तो उसकी हालत और ज्यादा खराब हो गई थी। उसके कपड़े फट चुके थे और घर में कपड़े सीने के लिए सुई तक नहीं थी। 


दीपक और राजू के पूछने से पहले ही श्याम ने अपने साथ घटित हुई घटना के बारे में सब कुछ सच-सच दोनों को बता दिया। वह बोला कि तुम लोग मेरी मदद करना छोड़ दो । अब तो मुझे भी लगता है कि मेरी किस्मत में धनवान बनना लिखा ही नहीं है! मेरी वजह से तुम्हारा भी काफी नुकसान होता रहता है। राजू को अपने दोस्त की ऐसी हालत देख उस पर दया आ गई लेकिन वह जानता था कि वह चाहे कितनी भी उसकी मदद करने की कोशिश करें उसका परिणाम बिल्कुल निष्फल रहता है इसलिए वह तुरंत बाजार जा कर एक सुई खरीद कर लाया और उसने शाम को वह सुई दे दी।


Kahani sangrah


राजू और दीपक के जाने के बाद श्याम ने अपनी मां से कह कर अपने फटे कपड़े सिलवा लिए। उसी रोज उनके पड़ोस में रह रहे मछुआरे की बीवी उनके घर आई और सुई मांगने लगी वह बोली मेरे पति को मछलियां पकड़ने जाना है लेकिन हमारा मछली पकड़ने का जाल कई जगह से फट चुका है अगर आपके पास सुई है तो मेरी मदद कर दीजिए इसके बदले में मैं आपको एक अच्छी सी मछली देकर जाऊंगी।


शाम की माने उस महिला को सुई दे दी। अगले दिन वह महिला एक बड़ी सी मछली के साथ उनके घर आई और उन्हें धन्यवाद देते हुए सुई और मछली उनको देकर चली गई। श्याम की माने जब मछली को पकाने के लिए काटना शुरू किया तो उसके पेट से चमकीला पत्थर निकला। शाम को पत्थर कीमती जान पड़ा इसलिए वह जोहरी के पास जाकर उसकी जांच कराई तो वो बेहद कीमती हीरा था! उसको बेचकर शाम को 20000 सोना मोहरे मिल गई। इतने सारे पैसे उसकी गरीबी दूर करने के लिए काफी थे। उन पैसों से उसने अपने लिए एक अच्छा घर खरीदा और काफी सारी खेती करने लायक जमीन और एक बगीचा भी। साथ में कई सारे गाय भैंस खरीदी ताकि दूध का व्यापार शुरू कर सकें।


हमेशा की तरह कुछ दिनों बाद जब उसके दोनों दोस्त राजू और दीपक उसे मिलने आए तो उसकी बदली हुई परिस्थिति देखकर दोनों दंग रह गए। इस बार दीपक को शाम की बातों पर भरोसा नहीं हो रहा था उसे लग रहा था कि जरूर उसी के दिए पैसों से श्याम ने तरक्की की है लेकिन वह बताना नहीं चाहता। लेकिन राजू को उस पर विश्वास हो गया था कि जरूर उसी सुई की वजह से उसकी किस्मत बदली हैं।


श्याम अपने दोनों दोस्तों को अपने खेतों में घुमाने ले गया और बाद में अपने बागीचे मे। वहां पर कुछ बच्चे पहले से एक पेड़ पर चढ़कर फल तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। बच्चों ने गलती से वहां पर एक पक्षी का घोंसला गिरा दिया जिसमें एक पघडी के अंदर 195 सोने के सिक्के वाली वही पोटली थी जिसे कभी एक चील श्याम के सिर से ले उड़ी थी!


उसे लेकर जब तीनों दोस्त घर को लौटे तब शाम की मां गाय-भैंसों को भूसा खिला रही थी और उसी दौरान भूसे की एक टोकरी से वह 200 सोने के सिक्के भी निकले जो श्यामने कभी अपने पुराने घर में भूसे की टोकरी में छिपाए थे! उसकी किस्मत कुछ ऐसा खेल खेल रही थी की उसके हक की सारी चीज़े और खुशियां उसके पास लौटकर आ रही थीं।


नसीब चमकने की वजह से शाम तो खुश था ही लेकिन उससे भी ज्यादा खुश थे उसके दोनों अच्छे और सच्चे मित्र।


दोस्तों, नसीब का खेल  ये हिंदी कहानी आपको कैसी लगी? आप अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर बताइएगा। ऐसी और मजेदार, प्रेरक कहानियां हर दिन पढ़ने के लिए आप हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं।


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