घर का गार्डन : बेटे बहु को सिख देनेवाली कहानी | parivaarik kahani

घर का गार्डन : बेटे बहु को सिख देनेवाली कहानी | parivaarik kahani 


 "आप नहीं जानती मां यहां उल्टी गंगा बहने लगी है। ससुरजी जब से रिटायर्ड हुए है मेरी सास और ससुर दोनो किसी फिल्म के लवबर्ड्स की तरह अपने आप को जवान समझने लगे हैं। दिनभर हमारे घर के पास बने गार्डन में झूले पर बैठे बातें करते रहते हैं। उन्हे अपने पक चुके बालों का भी खयाल नहीं रहता है अब! इस उम्र में उन्हें ऐसा व्यवहार क्या शोभा देता है?" कविता अपने ससुराल के समाचार अपनी मां को बता रहीं थी।


घर का गार्डन : बेटे बहु को सिख देनेवाली कहानी | parivaarik kahani


तभी सास(अल्का) उदास मन से रसोईघर में जाती है क्योंकि बहू की वो कड़वी बाते उन्होंने सुन ली थी। उसकी सभी बातों को नजरंदाज कर सास मसाले वाली चाय बनाके पहले एक कप बहू को उसके कमरे में दे कर दूसरा कप अपने पति(सोमनाथ) के लिए लेकर जाति हैं। बहु ये देखती हैं और अपना मुंह टेढ़ा करती हैं।


सास ने फिर से एक बार उसकी तरफ दुर्लक्ष किया क्योंकि ससुर के निवृत्त होने के बाद यह उनका रोज का ही नित्यक्रम बन गया था। वह अब किसी की भी परवाह किए बिना रोज अपने मर्जी के मुताबिक नए नए कपड़े पहन कर गार्डन में अपने पति के साथ बैठकर अपना ज्यादातर समय बिताती थी। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपने बच्चों के लिए काम करते बिता दी थी इसलिए अब बची कूची जिंदगी वह दोनों एक साथ समय बिताकर जीना चाहते थे।


घर का गार्डन : बेटे बहु को सिख देनेवाली कहानी | parivaarik kahani 


आनंद निवास.. बंगले जैसा दो मंजिलों का घर पति-पत्नी का ये सपना था  और उन्होंने बड़ी मेहनत से इसे पूरा भी किया था। अल्का जी ने घर के सामने बड़े प्यार से उस गार्डन को बनाया था और वहां पर कई फूलो के पौधे और वेले उगाई थी।उनके उगाए चंपा, जसवंती,मोगरा,गुलाब ..ऐसे दर्जनों फूलो की खुश्बू से उनका गार्डन हमेशा महकता रहता था। अलग-अलग ऋतुओं में अल्काजी अलग-अलग सब्जियां भी अपने उस गार्डन उगाया करती। रसोई के लिए धनिया, पुदीना और मेथी उन्हें कभी बाहर से खरीदी नहीं पड़ती थी।



इतने सालों तक काम की भाग दौड़ में सोमनाथ जी कभी भी इस जगह का आनंद ले नहीं पाए थे लेकिन अब उनका पूरा खाली समय इसी जगह पर बितता था। दरअसल एक और छोटा सा घर वहां बना सके इसलिए उन्होंने वह जगह खरीदी थी लेकिन अब वह संभव नहीं था। अलका जी को अपने बनाए उस गार्डन में एक झूला चाहिए था जो उन्होंने ला कर दिया था। और अब वही झूला उनको एक दूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा सुखमय समय बिताने का जरिया बन गया था।


उन्होंने अपने घर में सभी जरूरी चीजों की और  बाकी ऐशो आराम की चीजों की कोई कमी नहीं रखी थी। फिर भी बहु को  दोनों का उस झूले पर बैठकर समय बिताना खटकता था। पहले दिनभर उसके साथ रहनेवाली सास अब ज्यादा समय अपने पति को देने लगी थी।


अपने सास ससुर को टोंट मारने का एक भी मौका कविता नहीं छोड़ती थी। वह हमेशा अपना दिमाग उनको उस जगह से हटाने के लिए लगाती और एक बार उसने ऐसा करने के लिए एक षड्यंत्र भी रचा।



"अजय तुम्हे नही लगता हमें एक बड़ी कार लेनी चाहिए?" कविता ने अपने पति से कहा।

"आईडिया तो अच्छा है लेकिन कार रखने के लिए जगह कहां है हमारे पास? एक ही छोटा सा गैरेज है जहां  सिर्फ एक कार के लिए जगह है। "अजय ने चिंतावाले स्वर में कहां।


"कौन कहता है जगह नहीं है? वह गार्डन है ना जहां आजकल दो लव बर्ड्स अपना डेरा जमाए बैठते हैं!" कविता ने पति की तरफ तिरछी नजर करते हुए कहा।


"आजकल तुम कुछ ज्यादा नहीं बोलने लगी हो?" अजय ने अपनी पत्नी को फटकार लगाते हुए कहा लेकिन सच तो ये था की उसने भी इस बारे में अपने पिता से बात करने का मन बना लिया था।



अगले दिन अजय पिता के पास गया और उनसे बोला," पिताजी मेरा और आपकी बहू का मन है कि एक बड़ी कार ली जाए।"

"पर बेटा हमारे पास पहले से एक गाड़ी है ना! दूसरी गाड़ी लेने के बाद हम उसे रखेंगे कहा?" सोमनाथ जी ने कहां।


"पिताजी इसी गार्डन में एक नया गैरेज बनाने की सोच रहा हूं। कविता को इस गार्डन की कोई पड़ी नहीं है और मां भी भला अब और कितने दिनों तक गार्डन का ख्याल रखेंगी? इसलिए अच्छा होगा कि सभी पेड़ पौधों को तोड़कर यहां गैरेज बना लिया जाए।"अजय ने अपने विचार बताएं।


दूर खड़ी अल्काजी  का यह सुनकर जैसे दिल ही बैठ गया। सोमनाथ जी अपना गुस्सा दबाते हुए बोले," मुझे तुम्हारी मां से पूछना पड़ेगा , मुझे थोड़ा वक्त दो।"


"क्या पिताजी इसमें क्या मम्मी से पूछना? आप दोनों तो किसी का विचार करते ही नहीं हैं!  दिन भर झूले पर बैठे रहते हैं बिना 4 लोगों के बारे में सोचे। अब कविता घर में है, छोटे बच्चे भी है घर में और आने जाने वाले लोग भी तो आपको कैसे देखते हैं! आप किसी का विचार नहीं करते।" अजय थोड़ा चिढ़ते हुए ही बोला। अंदर से कविता की बड़बड़ भी चालू ही थी। सोमनाथ कुछ नहीं बोल पाए।



उस दिन बेटे और बहू ने बाहर से अच्छा खाना मंगवाया था लेकिन अल्का और सोमनाथ जी के गले से निवाला उतरे ना ऐसा हो गया था। उस पूरी रात दोनों ही जागते रहे थे। लेकिन सुबह-सुबह कुछ विचार आने से सोमनाथ जी के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी।


सोमनाथ जी खुद रसोई घर में जाकर चाय बना कर लाए थे लेकिन अल्का जी इतनी निराश थी कि वह आज बगीचे में किसी भी पेड़ पौधे को पानी तक डालने नहीं गई थी। 


पूरा दिन तो बड़ा ही नॉर्मल तरीके से गुजरा था लेकिन शाम को अजय की आंखें फटी की फटी रह गई थी जब उसने घर के आगे "घर भाड़े से देना है" का बोर्ड पढ़ा था।


 अजय ने  सोमनाथ जी से कहा," पापा माना कि हमारा घर बड़ा है लेकिन इसका यह मतलब थोड़ी है कि हम उसे भाड़े से दे दे!"


"बेटा अगले महीने मेरे साथ काम करने वाले शर्मा जी रिटायर हो रहे हैं और वही अब इस घर में भाड़े से रहेंगे।" सोमनाथ जी ने कहां।


"लेकिन वह कहां रहेंगे?" अजय ने अपनी शंका भरा सवाल पूछा।


"घर के उस हिस्से में जहां तुम रहते हो।"सोमनाथ जी ने कड़क आवाज में कहा।


"और पापा हम कहां रहेंगे।" नरम पड़ती आवाज में अजय ने पूछा।


"बेटा मैं मानता हूं कि मैंने तुम्हें इस लायक तो बनाया है कि तुम अपने पैरों पर खुद खड़े हो सको। इसलिए तुम्हारे पास एक महीना है तुम अपने लिए नया फ्लैट ढूंढ लो या कंपनी के फ्लैट में रहने चले जाओ। वहां तुम्हें तुम्हारी उम्र के लोगों का साथ मिल जाएगा और इस घर में हमें हमारी उम्र के लोगों का साथ मिल जाएगा। तुम भी सुखी और हम भी!"सोमनाथ जी ने सब कुछ साफ-साफ बताया।


"पापा लगता है आप तो नाराज हो गए! कल मैंने जो भी कहा मेरा वह मतलब नहीं था।" अजय ने अपने पापा के आगे हाथ जोड़ते हुए कहां।


"नहीं बेटा तुम्हारी जनरेशन ने हमें एक सबक दिया है कि कैसे प्रैक्टिकल बन कर रहा जाता है। हम बड़े तुम बच्चों को साथ में देखकर खुश हो सकते हैं तो तुम्हें हमे साथ में देखने में क्यों प्रॉब्लम होती है?


यह घर, यह गार्डन ,गार्डन में बड़े हुए यह पेड़ पौधे इस बात के गवाह है कि कैसे तुम्हारी मां ने मेरे लिए और खासकर तुम्हारे लिए जी जान से सेवा की है, अपना समय अपनी जवानी खर्च कर दी है। इसलिए इन सब पर तुमसे और मुझसे भी ज्यादा तुम्हारी मां का हक है और इन सब को मैं तुम्हारी मां से नहीं छीन सकता।"सोमनाथ जी ने अपनी पत्नी की तरफ देख कर कहां।



दोस्तों, जाने अनजाने में हम हमेशा यह गलती कर बैठते हैं..हम सोचते हैं कि हमारे बड़े-बूढ़े हमारे हिसाब से जीवन जिए।  ऐसा करवाने के लिए हम उन पर अपने विचार थोपने लगते हैं लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि उन्होंने हमारे लिए कितना त्याग किया है और जब उन्हें उनके हिसाब की जिंदगी जीने का मौका मिलाता है तब उनका साथ देने के बजाय हम उनके विरोधी बन जाते हैं।

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