साधु और चूहा : पंचतंत्र की कहानी | Panchatantra ki kahani
दोस्तों आज मैं आपके लिए पंचतंत्र की एक बेहतरीन कहानी लेकर आया हु। पंचतंत्र की कहानियों की खासियत है कि वे बड़ी सिंपल सी होती है लेकिन बड़ा गहरा सबक और अच्छी बातें हमें सिखाती है।
साधु और चूहा : पंचतंत्र की कहानी | Panchatantra ki kahani
दक्षिण भारत के एक गांव मे एक शिव मंदिर में एक साधु रहा करता था। यह साधु भगवान शिव के बहुत बड़ा भक्त था। यह मंदिर गांव में था इसलिए साधु दिन में भिक्षा मांगने के लिए शहर जाता और जरूरत से थोड़ी ज्यादा भिक्षा मांग कर शाम को फिर से मंदिर लौट आता था।
साधु अपनी मांगी हुई भिक्षा में से अपने जरूरत के हिसाब से अपने लिए रखता और बाकी का मंदिर की देखभाल और साफसफाई में उसका साथ बटा रहे कामगारों के लिए खाने के लिए दे देता।
साधु अपने हिस्से का खाना थोड़ा सा खाता और थोड़ा एक टोकरी में रख देता ताकि बाद में खा सके। लेकिन साधु जिस कुटिया में रहता था उस कुटिया में एक चूहा भी था और यह चूहा साधु के खाने की टोकरी से हर दिन कुछ खाना चुरा लेता था।
खाने को चूहे से बचाने के लिए साधु ने कई उपाय किए थे। जैसे कि साधु कभी-कभी उस चूहे को छड़ी से भगाने की कोशिश करता या खाने की टोकरी को ऊंचाई पर रखता। हर बार अलग-अलग जगह पर टोकरी रखता। फिर भी किसी ना किसी तरह चूहा उस टोकरी से खाना चुराने में कामयाब हो ही जाता था।
साधु यह देखकर हैरान था कि कैसे एक छोटा सा चूहा इतना चतुर और आत्मविश्वास से भरा हो सकता है! एक दिन साधु इस चूहे को छड़ी से भगाने में व्यस्त था तभी उसके द्वार पर उसका गुरु आया। गुरु काफी देर तक वहीं पर खड़ा रहा लेकिन जब साधु ने उस पर ध्यान नहीं दिया तो गुरु गुस्सा होकर यह कहकर जाने लगा कि अब आगे से मैं कभी तुम्हारे घर नहीं आऊंगा! तब साधु ने भागते हुए उन्हें रोका।
साधु ने अपने गुरु से माफी मांगी और उन्हें चूहे का सारा प्रकरण समझाया। चूहे के बारे में जानने के बाद गुरु ने साधु से कहा कि जरूर उस चूहे ने पहले से काफी सारा खाना जमा कर रखा होगा इसलिए उसका आत्म विश्वास इतना पक्का है। जब किसी के पास संसाधनों की कमी नहीं होती है तब यह विचार कि अगर वो किसी कोशिश में असफल हो भी जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, उसे काफी दृढ़ आत्मविश्वास देता है।
काफी सोच विचार करने के बाद साधु और उसका गुरु इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अगर उस चूहे का आत्मविश्वास खत्म करना है तो उसके द्वारा जमा किया गया खाने का भंडार उससे दूर करना होगा, फिर वह अपने आप अपने कोशिशों में कमजोर पड़ जाएगा।
अगले दिन साधु ने चूहे पर नजर रखी और जब वो टोकरी में खाना चुराने के लिए आया तो चुपचाप साधु उसका पीछा करता रहा और आखिरकार चूहे के बिल तक जा पहुंचा। चूहे के बिल को खोदने के बाद साधु ने देखा के चूहे ने कहीं से चुराकर अनाज का एक बड़ा ढेर जमा कर रखा था। साधु ने अनाज के उस ढेर को वहां से उठा लिया और गाय को खिला दिया।
चूहा जब अपने बिल में आया और उसने देखा कि उसके खाने का भंडार अब वहां नहीं है तो उसका दिल जैसे बैठ गया। वो काफी निराश हो गया। उसे तरह-तरह के विचार आने लगे कि अब आगे उसका क्या होगा? नकारात्मक विचार उसके दिलो-दिमाग में इस तरह से हावी हो गए कि धीरे-धीरे वह अपना आत्मविश्वास खोने लगा।
चूहा ने किसी तरह अपने आप को संभाला और फिर से साधु के कुटिया से खाना चुराकर अपना भंडार तैयार करने का निर्णय लिया। चूहा साधु की कुटिया में पहुंचा तो हमेशा की तरह साधु ने खाने की टोकरी कुछ ऊंचाई पर रखी थी लेकिन अबकी बार चूहा काफी धीरे-धीरे और कांपते हुए उस टोकरी तक पहुंच पाया था! वह टोकरी से खाना चुराने वाला ही था कि वो अचानक वहां से फिसला और जमीन पर आ कर गिरा।
नीचे साधु अपनी छड़ी लिए खड़ा ही था। जैसे तैसे चूहा अपनी जान बचाकर वहां से भगा और उस दिन के बाद कभी भी चूहा साधु का खाना चुराने के लिए नहीं आया।
दोस्तों, पंचतंत्र की इस । मजेदार कहानी को अगर हम अपने जीवन के साथ जोड़कर देखें तो चूहे का जमा किया वह भंडार हम अपनी संपत्ति या बैंक बैलेंस के साथ कम्पेयर कर सकते हैं और आपने भी यह महसूस किया होगा अगर हमारे पास जमा पूंजी अच्छी है तो हमारा आत्मविश्वास कुछ और ही होता है लेकिन अगर हमारे पास कुछ नहीं होता है तो हम छोटे मोटे काम भी ठीक से नहीं कर पाते हैं। हमेशा किसी न किसी तरह की सुरक्षा का विचार हमारे दिमाग में रहता है और ऐसे असुरक्षा के विचार हमें आगे नहीं बढ़ने देते है।
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