सही फैसला : मोरल कहानी | short Moral story in Hindi

 सही फैसला : मोरल कहानी | short Moral story in Hindi 


स्वागत है दोस्तों आप सभी का एक बार फिर से hindi-kahaniya.in पर आज के इस ब्लॉग पोस्ट में आप पढ़ेंगे short moral story in Hindi. हिंदी भाषा में लिखी छोटी सी प्रेरक कहानी पढ़कर आपको मजा आएगा।


short Moral story in Hindi



सही फैसला : मोरल कहानी | short Moral story in Hindi 


यह कहानी 200 साल पहले की है। दो मुसाफिर एक साथ किसी मंजिल  के लिए निकले। एक का नाम था लाभ सिंह और दूसरे का नाम था संतोष सिंह।


 दोनों एक साथ सफर कर रहे थे। दोनों में फर्क था स्वभाव का। जहां संतोष सिंह अपने नाम की तरह ही संतोष पूर्ण जीवन जीने वाला और दयालु था तो लाभ सिंह स्वभाव से बहुत कंजूस और लालची स्वभाव का था।


दोनो कई दिनों से लगातार सफर कर रहे थे इसलिए थकान और भूख से दोनों की हालत खराब हो गई थी। दोनों चलते चलते एक गांव तक आ पहुंचे। वहां उन्होंने एक गरीब साधारण सी बूढ़ी औरत के घर पर जाकर उसे आराम करने के लिए पूछा। बूढ़ी औरत स्वभाव से अच्छी थी। उसने दोनों को आराम करने की जगह दे दी और उनकी हालत देखकर उन्हें खाना भी खिला दिया।


 बूढ़ी औरत ने दोनों से काफी बातें की और बातों ही बातों में उसे पता चल गया कि दोनों एक बहुत लंबे सफर के लिए निकले हैं।


अगले दिन जब दोनों मुसाफिर अपने सफर के लिए जाने लगे तब उस बूढ़ी औरत ने दोनों को सफर में खाने के लिए रोटियां बांधकर दी।


 बूढ़ी औरत ने संतोष सिंह को 3 रोटियां बांधी और लाभ सिंह को दो रोटियां बांधी! उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उनके साथ की गई बातों से वह दोनों के स्वभाव को अच्छे से जान चुकी थी।


दोनों अपने सफर में आगे बढ़े तब लाभ सिंह संतोष सिंह से बोला - देखो उस बूढ़ी औरत ने मेरे साथ का कैसा पक्षपात किया है! उसने तुम्हें 3 रोटियां और मुझे सिर्फ दो रोटियां दी  है। 


संतोष सिंह ने उसे समझाते हुए कहां - कोई बात नहीं दोस्त, यह पांच रोटीया हम दोनों के लिए काफी है। शायद हम इतनी खा भी नहीं पाएंगे अगर तुम्हें लगेगा कि तुम्हें और चाहिए तो हम मेरी तीसरी रोटी को आधी बांट कर खा लेंगे।


दोनों ने अपना सफर जारी रखा। अगले दिन वो एक जंगल के पास तालाब देखकर वहां आराम करने के लिए रुके और वहीं पर उन्होंने अपनी रोटियां खा कर पानी पीकर थोड़ा आराम करने का मन बनाया।


 उन दोनों ने अपनी रोटियां खानी शुरू ही की थी कि तभी वहां एक और तीसरा मुसाफिर जिसका नाम आनंद लाल था आ गया।


आनंद लाल दोनों से बोला - दोस्तों में बड़े लंबे सफर पर निकला हु और अब इस बड़े से जंगल में पूरे 40 घंटों से सफर कर रहा हूं। यहां आस-पास कोई घर नहीं है जिससे मैं खाने के लिए मदद मांग सकू। अगर आप लोग मुझे अपने साथ खाना खाने दे तो मैं उसका मोल जरूर चुका दूंगा।


लाभ सिंह तो चुप था लेकिन संतोष सिंह उससे बोला - कोई बात नहीं आओ तुम भी हमारे साथ खा लो। हमारे पास कुल 5 रोटियां है और इन पांचों रोटियों में हम तीनों का पेट अच्छे से भर जाएगा।



संतोष सिंह ने कहा ही था कि आनंद लाल तुरंत उनके साथ रोटियां खाने के लिए बैठ गया। संतोष सिंह ने सभी रोटियों को तोड़कर तीन तीन हिस्से कीये। इस तरह सभी पांच रोटियों के 15 हिस्से हो गए और सभी ने पांच - पांच बांटकर खाली।


 जाते-जाते आनंद लाल ने दोनों का खूब धन्यवाद किया और ₹5  संतोष सिंह के हाथों में रखकर चला गया।आनंद लाल के जाने के बाद संतोष सिंह ने उन 5 रुपयों में से 3 रूपये खुद रखें और ₹2 लाभ सिंह को दिए।


 लाभ सिंह फिर से नाराज हो गया। उसने कहा - आनंद लाल ने यह पैसे उसकी मदद करने के लिए दिए थे ना की इसलिए की हमने उसको रोटिया बेची थी! लाभ सिंह संतोष सिंह को बुरा भला कहने लगा।


 संतोष सिंह को पैसों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लेकिन लाभ सिंह की बातें सुनकर उसे भी गुस्सा आ गया! दोनों ने तय किया कि पास वाले गांव में किसी समझदार आदमी से इसका फैसला करवाया जाए।



दोनों नजदीक के एक गांव पहुंचे। वहां पर गांव के सबसे समझदार आदमी के बारे में पूछने पर सभी ने वहां के सरपंच का नाम लिया। दोनों सरपंच के पास पहुंच गए। सरपंच ने दोनों की बातें सुनी और परिस्थिति को समझा और लाभ सिंह को कहा - तुम्हें जितने रुपए मिलने चाहिए थे उससे ज्यादा मिले हैं इसलिए तुम ₹1 संतोष सिंह को दे दो।


लाभ सिंह चौक गया! उसने सोचा कहां वो ज्यादा रुपए पाने के सपने देख रहा था और सरपंच ने उसे एक और रुपया संतोष सिंह को देने के लिए कह दिया! उसने जब ऐसा करने का कारण पूछा तो सरपंच ने समझाते हुए कहा - देखो संतोष सिंह के पास तीन रोटीयां थी जिसके 9 टुकड़े किए गए और तुम्हारे पास दो रोटियां थी जिसके 6 टुकड़े किए गए। तुमने अपने 6 टुकड़ों में से  खुद ने 5 टुकड़े खाए और बचा हुआ सिर्फ एक टुकड़ा ही तुमने आनंद लाल को दिया। यानी कि आनंद लाल को बाकी के 4 टुकड़े संतोष सिंह ने दिए थे। अगर हम एक टुकड़े के लिए ₹1 पकड़े तो तुमने सिर्फ ₹1 मिलना चाहिए इसलिए तुम ₹1 संतोष सिंह को दे दो। अगर तुम रोटी बेचकर पैसा कमाते तब भी तुम्हें ₹1 मिलना चाहिए था और अगर तुम्हे मदद करके पैसे मिले हैं तब भी तुम्हारी मदद संतोष सिंह की मदद से कम है इसलिए दोनों ही सूरतो में तुम्हें सिर्फ ₹1 ही मिल पाएगा।


लाभ सिंह को सरपंच के बात माननी पड़ी। सरपंच की समझदारी और सूझबूझ देखकर उसके गांव वाले और संतोष सिंह ने उनकी खूब वाहवाही की। लाभ सिंह को अपने लालच की कीमत चुकानी पड़ी।



दोस्तो हिंदी की एक छोटी सी कहानी हमें कई सबक देती है।


पहला सबक हमें जितना मिलता है उसमें संतोष करना चाहिए। दूसरा सबक लालच का नतीजा हमेशा बुरा होता है। तीसरा सबक हम हर परेशानी को समझदारी सूजबुझ और अलग नजरिए से हल कर सकते हैं।


पढ़िए अगली कहानी 


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