तेनालीराम की कहानी : सोने के आम | Tenalirama ki kahani

 तेनालीराम की कहानी : सोने के आम | Tenalirama ki kahani 


तेनाली रामाकृष्णा और  विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेवराय की दर्जनों कथाएं उपलब्ध है कई शायद आपने पढ़ी भी होगी। आज की तेनाली राम की समझदारी और बुद्धिमानी की कहानी पूरी जरूर पढ़िएगा ।


तेनालीराम की कहानी : सोने के आम | Tenalirama ki kahani


तेनालीराम की कहानी : सोने के आम | Tenalirama ki kahani 


बात तब की है जब समय के साथ-साथ राजा कृष्णदेव राय की माता बहुत वृद्ध हो गई थीं। जैसे की बुढ़ापे होता है एक बार माताजी बहुत बीमार हो गई। उन्हें  लगने लगा था कि अब वे ज्यादा समय नहीं जी पाएंगी। उन्हे आम बहुत पसंद थे , उन्हें आम  से लगाव था , इसलिए जीवन के आखरी दिनों में वे आम दान करना चाहती थीं। उन्होंने बेटे से ब्राह्मणों को आमों को दान करने की इच्छा जताई । उनका मानना था कि इस प्रकार दान करने से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी! लेकिन दुर्भाग्य से कुछ ही दिनों बाद माताजी अपनी अन्तिम इच्छा की पूर्ति किए बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो गईं।



एक अच्छा पुत्र होने के नाते उनकी मृत्यु के बाद राजा ने सभी विव्दान ब्राह्मणों को बुलाया और अपनी माँ की अन्तिम अपूर्ण इच्छा के बारे में बताया और आगे क्या करना चाहिए इस पर सलाह मांगी। कुछ देर तक सोचने के बाद सभी ब्राह्मण बोले, " यह बिलकुल अच्छा नहीं हुआ महाराज, जब किसी की अन्तिम इच्छा पूरी नहीं होती तो उन्हें मुक्ति ही नहीं मिल पति हैं और उन्हें प्रेत योनि में ही भटकना पड़ता है । महाराज आपको आपकी माताजी की आत्मा की शान्ति के लिए कोई  उपाय  जरूर करना चाहिये।”


तब महाराज ने उनसे कहां," मैने इसी लिए तो आप सब को यहां बुलाया है। आप लोग इस विषय में ज्यादा जानते है इसलिए आप ही बताए मुझे कया करना होगा?"


"आपकी माताजी की आत्मा की शांति के लिये आपको उनकी पुण्यतिथि पर उनकी पसंदीदा वस्तु सोने से बनवाकर यानी कि सोने के आमों का दान करना पडेगा।” ब्राह्मणों ने कहां।


कृष्णदेवरय किसी भी तरह अपनी माता कि आत्म को शांति दिलाना चाहते थे इसलिए उन्होंने  मॉ की पहली ही पुण्यतिथि पर कुछ ब्राह्मणों को भोजन के लिय आमंत्रित किया और हर ब्राह्मण को शुद्ध सोने से बने आम दान में दिए ।



जब तेनाली राम तक ये बात पहुंची, तो वह तुरन्त समझ गया कि ब्राह्मणों ने उनके राजा की सरलता तथा भोलेपन का गैर फायदा उठाया है इसलिए तेनालीराम ने उन ब्राह्मणों को सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाई।


अगले दिन तेनाली राम ने ब्राह्मणों को निमंत्रण-पत्र भेजा। उसमें लिखा था कि तेनालीराम भी अपनी माता की पुण्यतिथि पर दान करना चाहता हैं क्योंकि उसकी माता भी अपनी एक अधूरी इच्छा छोड़कर मरी थीं। जब से उसे पता चला है कि उसकी माँ की अन्तिम इच्छा पूरी न होने के कारण प्रेत बन भटक रही होंगी, वह बहुत ही दुःखी है और चाहता है कि जल्दी से उसकी माँ की आत्मा को शान्ति दिलाना चाहता हैं।


 ब्राह्मणों की आंखे चमक गई उन्होंने सोचा कि तेनाली राम के घर से भी बहुत मूल्यवान दान मिल सकता है  क्योंकि वह शाही विदूषक जो है!"


सभी ब्राह्मण तय दिन तेनाली राम के घर पहुँच गए। ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन परोसा गया। भोजन करने के बाद सभी दान मिलने की प्रतीक्षा करने लगे। तभी उन्होंने देखा कि तेनाली राम लोहे के सलाखों को आग में गर्म कर रहा है। पूछने पर तेनाली राम बोला, "मेरी माँ फोडों के दर्द से परेशान थीं। मृत्यु के समय  भी उन्हें बहुत तेज दर्द हो रहा था। इससे पहले कि मैं गर्म सलाखों से उनकी सिकाई करता, वह मर चुकी थी। अब उनकी आत्मा की शान्ति के लिए मुझे आपके साथ वैसा ही करना पडेगा! जैसी कि उनकी अन्तिम इच्छा थी।" यह सुनकर ब्राह्मण बौखला गए। वे वहॉ से तुरन्त चले जाना चाहते थे। वे गुस्से में तेनाली राम से बोले कि हमें गर्म सलाखों से दागने पर तुम्हारी मॉ की आत्मा को शान्ति कैसे मिलेगी?"


" नहीं महाशय, मैं झूठ नहीं बोल रहा। यदि सोने के आम दान में देने से महाराज की माँ की आत्मा को स्वर्ग में शान्ति मिल सकती है तो मैं अपनी मॉ की अन्तिम इच्छा क्यों नहीं पूरी कर सकता?” तेनाली राम ने ब्राह्मणों से कहां। यह सुनते ही सभी ब्राह्मण समझ गए की तेनालीराम क्या कहना चाहता है। वह हाथ जोड़ते हुए बोले, "तेनालीराम, हमें क्षमा करो। हम वे सोने के आम तुम्हें दे देते हैं। बस तुम हमें जाने दो।"


तेनाली राम ने सोने के आम लेकर ब्राह्मणों को जाने दिया, पर एक लालची ब्राह्मण ने सारी बात राजा को जाकर बता दी। यह सुनकर राजा तेनाली राम पर ही क्रोधित हो गए और उन्होनें तेनाली राम को बुलाया। राजा बोले "तेनाली राम यदि तुम्हे सोने के आम चाहिए थे, तो मुझसे मॉग लेते। तुम इतने लालची कब से हो गए? बिना हमसे पूछे तुमने ब्राह्मणों से सोने के आम ले लिए?"


राजा की बात खत्म होनेपर तेनाली बोला "महाराज, मैं लालची  बिल्कुल भी नहीं हूँ।  मेरा ऐसा करने के पीछे का उद्देश्य तो ब्राह्मणों की लालच की प्रवृत्ति को रोकना था। आप ही सोचिए यदि वे आपकी मॉ की पुण्यतिथि पर सोने के आम ग्रहण कर सकते हैं, तो मेरी मॉ की पुण्यतिथि पर लोहे की गर्म सलाखें क्यों नहीं झेल सकते?"


राजा तेनाली राम की बातों का अर्थ समझ गए। राजा ने ब्राह्मणों को बुलाया और उन्हें भविष्य में लालच त्यागने को कहा। ब्राह्मणों ने भी अपनी गलती मानते हुए महाराज से माफी मांगी और फिर कभी ऐसा व्यवहार नहीं करने का वचन दिया।


दोस्तों तेनालीराम की ये मजेदार कहानी पढ़कर हमें यह तो पता चल गया कि अंधश्रद्धा सैकड़ों सालों से चली आ रही है लेकिन हमें भी तेनालीराम की तरह समझदारी से काम लेकर हमें और अपनों को ऐसी अंधश्रद्धा उसे बचाना चाहिए।


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