तेनालीराम की कहानी : मौत कि सजा | tenalirama story
बीजापुर के सुल्तान इस्माइल आदिल शाह को डर था कि कृष्णदेव राय अपने प्रदेश रायचूर और हमकल वापस लेने के लिए उस पर कभी भी हमला कर सकते हैं। उसने कई लोगों के मुख से यह सुन रखा था कि कृष्ण देवराय इतने बहादुर और शूरवीर है कि ऐसे कई प्रदेशों को जीतकर वापस हासिल कर चुके हैं।
आदिल को अब हमेशा इस बात की चिंता सताने लगी थी कि कभी भी कृष्ण देवराय उस पर हमला करेंगे और उससे दोनों प्रदेश छीन लेंगे। वह इतना परेशान रहने लगा था कि उसका खाना, पीना, सोना सब हराम हो गया था इसलिए उसने इस चिंता से मुक्ति के लिए कृष्णदेव राय की हत्या करने का मन बना लिया।
इसके लिए उसने बड़े इनाम का लालच देकर तेनाली रामा के पुराने सहपाठी जो कि उसके मामा के संबंधी भी थे उस कनकराजु को इस काम के लिए राजी कर लिया।
इस षड्यंत्र में शामिल कनकराजू अपने मित्र तेनालीराम के घर पहुंचा तेनालीराम मित्रों का मित्रता उसने दिल खोलकर अपने पुराने सहपाठी मित्र कनकराजू का आदर सत्कार किया। तेनालीराम ने उसकी आवभगत में कोई कमी नहीं रखी। उसे आग्रह कर अपने घर भी ठहराया।
इसी दौरान जब तेनालीराम किसी काम से बाहर गया तो कनकराजू ने मौका देखकर तेनालीराम के नाम से राजा कृष्णदेव राय को संदेश भेजा उसने संदेश में लिखा था कि महाराज आप जितनी जल्दी हो सके मेरे घर आ जाइए मैं आपको ऐसी वस्तु दिखाने वाला हूं जो आपने जीवन में कभी भी नहीं देखी होगी।
राजा तेनालीराम को बहुत पसंद करते थे और उसका बहुत सम्मान भी करते थे इसलिए राजा ने ना आव देखा ना ताव बिना हथियार के वह तुरंत तेनालीराम के घर पहुंच गए। जैसे ही राजा तेनालीराम के घर में प्रवेश करने लगे कि कनकराजू ने 1 खंजर से उन पर हमला कर दिया। लेकिन हर तरह की युद्ध कला में पारंगत राजा ने इससे पहले कि उनके शरीर पर कोई घाव हो कनकराजू की कलाई पकड़ ली और इतनी ही देर में राजा के अंग रक्षकों ने उसे पकड़कर मार मार कर कनकराजू को वहीं पर ढेर कर दिया।
कनकराजू को तो अपने किए की सजा मिली ही लेकिन उस वक्त के कानून के हिसाब से जो व्यक्ति राजा की हत्या की साजिश करने वाले को अपने घर में आश्रय देता था, उसे भी मौत की सजा सुनाई जाती थी सो राजा ने तेनालीरामा को भी मौत की सजा सुना दी!
तेनालीराम ने राजा से रहम की अपील की और अपने बेकसूर होने का दावा किया। कृष्णदेव राय मन ही मन यह मानते थे कि तेनालीराम बिल्कुल बेकसूर है लेकिन सबूत के अभाव के कारण वह उसे बिना सजा दिए नहीं छोड़ सकते थे। कृष्णदेव राय ने तेनालीराम से कहा कि मैं तुम्हें इस सजा से बिल्कुल भी माफ नहीं कर सकता लेकिन हां मैं तुम्हें अपने लिए मौत की सजा का प्रकार चुनने का अवसर जरूर दे सकता हूं।
काफी सोचने के बाद तेनालीराम ने महाराज से विनती की कि उसे मौत की सजा दी जाए लेकिन बुढ़ापे की मौत की सजा दी जाए। इस तरह से अपनी बुद्धि और समझदारी का इस्तेमाल करके तेनालीराम एक बहुत बड़ी समस्या से बाहर निकल आया और अपनी जान बचाने में कामयाब हुआ। क्योंकि राजा ने उसे वचन दिया था कि वह अपनी इच्छा के हिसाब से मौत की सजा मांग सकता है इसलिए राजा ने भी उसे बुढ़ापे की मौत देने के लिए मंजूरी दे दी।
दोस्तों, कभी कभी ऐसा होता है कि हम ऐसी समस्याओं में फस जाते हैं जिन से निकलना काफी मुश्किल होता है। ऐसे समय में हमें चाहिए कि हम शांत रहें और अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाए।
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