हृदयस्पर्शी कहानी : अनाथो की मां | Heart Touching Story
एक गांव में अनुराधा नाम की औरत रहती थी उसका बालपन बहुत नाजुक हालातों में बीता था। वह कभी स्कूल नहीं गई थी। उसकी मां ने उसका विवाह विक्रमपुर के छोटे किसान से कम उम्र में ही शादी कर दी थी। उस काल में शादी कम उम्र में हो जाती थी।
उसके ससुराल वाले इतने अच्छे नहीं थे। सास उसे हमेशा दोष देती थी। उससे दिनभर सारा काम करवा लेती थी और खाने के समय उसे बासी खाना देती थी! उसका पति भी उसकी कोई बात नहीं सुनता और उस पर हर छोटी मोटी बात पर चिल्लाता था। वह जब अकेली रहती थी तब बहुत रोती थी।
कुछ महीने बाद अनुराधा गर्भवती हुई। उस वक्त उसे आराम, अच्छा खाना, प्यार और देखभाल की बहुत जरूरत थी लेकिन उसके ससुराल वालों ने उसे ऐसी जगह रहने पर मजबूर किया की जहां जानवरों को बांधा जाता था!
फिर कुछ दिन बाद उसने तबेले में ही एक बेटी को जन्म दिया। बेटी बहुत सुंदर थी लकी कन्या होने की वजह से घर के सब लोग उस पर नाराज हो गए! उनको लड़का चाहिए था और हो गई लड़की इसमें अनुराधा का क्या कसूर था?
अनुराधा की सांस उसे कहने लगी कि हमें तो लड़का चाहिए था। पर जो किस्मत में नहीं था वह कैसे मिलेगा? अनुराधा को पौष्टिक खाना तो दूर उसे रोज खाना भी नहीं मिलता था। फिर भला वह अपनी बच्ची को दूध कैसे पिलाती?
भूख से व्याकुल होकर अनुराधा को चक्कर आने लगे। एक दिन अनुराधा उसकी लड़की को लेकर उसके मायके पहुंची और उसने उसके साथ हुए सारे अत्याचार अपने माता पिता को बताए। पर उसके माता-पिता ने उसे अपने साथ रखने से इनकार कर दिया! उसके माता-पिता उसे फिर से ससुराल जाने के लिए कहने लगे।
अनु राधा की मां उसे कहा कि अब तेरा मायका तेरा नहीं रहा अब तेरा ससुराल ही तेरा घर है। तू ससुराल जा! ऐसी बातें सुनकर वह चौक गई। उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
फिर अनुराधा अपने मायके से निकली पर उसको उसके ससुराल जाने की इच्छा नहीं हुई।अनजान रास्ते पर उसकी बच्ची को लेकर दिनभर वह चलती रही। शाम हो गई वह प्यास और भूख से व्याकुल हो गई।
जैसे जैसे रात होने लगी वैसे वैसे उसको डर लगने लगा। उसके के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था चलते-चलते वह स्टेशन पर पोहची। स्टेशन भी उसे सुरक्षित नहीं लग रहा था, उधर बुरे किसम के आदमी घूम रहे थे, उनको देखकर वह बहुत घबरा गई। आखिरकार उसने विचार किया कि सबसे सुरक्षित जगह तो रात को श्मशान ही होगा क्योंकि उधर लुटेरे और डाकू जिंदा तो नहीं आएंगे। सब शमशान में जाने से डरते हैं।
फिर वह शमशान की ओर चली गई। उसने इधर उधर देखा तो उसको सब चिताएं जलते हुए दिख रहे थे। कुछ चिताएं जल के ठंडी हो चुकी थी। जिंदा लोगों से उसे मरे हुए लोगों की दुनिया अच्छी लगी। ऊसे बहुत जोर से भूख लग रही थी और डर भी लग रहा था।
उसकी बच्ची अचानक जोर जोर से रोने लगी। फिर उसकी बच्ची को देखकर वह भी रोने लगी। अनुराधा बच्ची से कहने लगी की शांत हो जा मेरी बच्ची, में कैसी मां हू कि मेरी बच्ची की भूख भी मिटा नहीं सकती!
उसने आजूबाजू देखा तो उसे चिता के पास 1 आटे का गोला दिखा और उसने उस आटे के गोले से दो मोटी रोटी बनाई। चिता की लकड़ी यो पर उसने वह रोटी सेकी और खाई। खाने के बाद उसने उस श्मशान को प्रणाम किया! क्योंकि श्मशान भूमि ने भूख से मर रही उसे और उसकी बच्ची को जीवनदान दिया था!
इस प्रकार अनुराधा सुबह स्टेशन पर रहती थी और रात को चोरो , डाकू से बचकर श्मशान में । उसे उधर जो खाने को मिलता था वह उसे खा कर सो जाती थी। 1 दिन सुबह स्टेशन पर वह अपनी बच्ची को एक जगह बिठाकर पास के नल से पानी पीने चली गई। फिर पानी पीने के बाद जब वह वापस आई तब उसकी बेटी उधर नहीं थी!
वो रोने लगी और चिल्लाते हुए बोली हे भगवान मेरी बेटी को कोन उठाकर ले गया। उसके बिना मैं क्या करूंगी?
उसने उसे बहुत ढूंढा पर उसे वह कहीं नहीं मिली। कितने दिन से अनुराधा अपनी बेटी के लिए रोए जा रही थी। ऊसकी हिम्मत टूट गई थी ।वह जब जब सोचती की मेरी छोटी सी बच्ची को कैसा लग रहा होगा? वो किस हाल में होगी? ऐसी बाते सोचकर उसका मन बैठ जाता।
एक दिन उसने देखा कि चार पांच बच्चे स्टेशन पर भीख मांग रहे थे, वह सब अनाथ थे! उनका आगे पीछे ख्याल रखने वाला कोई नहीं था। अनुराधा को उन अनाथ बच्चों में अपनी बेटी दिखाई देने लगी। उसकी बच्ची की याद मिटाने के लिए उसने उन बच्चों को अपने पास बुलाया और उनको अपने बच्चे की तरह प्यार करने लगी।
स्टेशन पर भीख मांग कर खाना खिलाने लगी और उनका ख्याल रखने लगी।वह सब बच्चे उसे मां कहने लगे। सब बच्चे अनुराधा के आसपास रहने लगे। धीरे-धीरे अनुराधा के पास 10, 12 बच्चे रहने लगे अब वह सब बच्चों की मां बन गई थी! बच्चों की संख्या बढ़ने के कारण उस छोटे स्टेशन पर भीख मांग कर गुजारा करना कठिन हो रहा था।
अनुराधा सब बच्चों को लेकर बड़े शहर की चली गई। उधर कई लोगों ने उसको देखा और जाना कि कैसे अनुराधा अनाथ बच्चों की सेवा करती है। लोगों ने उसके काम की तारीफ की, कुछ अच्छे लोगों ने पैसे जमा करके उन सब बच्चों के रहने, खाने-पीने और पढ़ाई की व्यवस्था की। उनके लिए घरों और स्कूल की निर्मिती की और धीरे-धीरे अनुराधा के पास हजार बच्चे होगए। वह सब की मां थी और वह सब बच्चे उसके खुदके बच्चे बने।
हर मां बाप की तरह अनुराधा ने उसके पास आने वाले हर अनाथ बच्चे का पालन पोषण और शिक्षा में कोई कमी नहीं छोड़ी। उन मे से कुछ बच्चे डॉक्टर, प्रोफ़ेसर इंजीनियर और देश के अच्छे नागरिक बने! उन्होंने उनका घर बसाया और उनकी मां अनुराधा को कभी नहीं भूले। वह सब मां से जुड़े रहते थे।
अनुराधा के काम को चारों ओर से प्रसिद्धि मिली। उसे शहर में उसके अनुभव बताने के लिए बुलावा आने लगा अनुराधा अब कमजोर औरत नहीं बल्कि एक बहादुर औरत बन गई थी।इतना सब होने के बाद भी अनुराधा जब सोती थी तब उसे उसकी बेटी की याद हमेशा आती थी।वो अपनी बेटी को कभी भुला नहीं पाई थी।
एक दिन अचानक कुछ लोग 12 वर्ष की लड़की को लेकर अनुराधा के पास आश्रम आए। वह लोग अनुराधा को कहने लगे कि इसके माता-पिता इस दुनिया में नहीं है। इस बच्ची को आप अपने पास रखोगी क्या? अनु राधा ने ध्यान से उस बच्ची को देखा की उसके माथे पर वही निशान है जो उसकी बच्ची को भी था। उसने जब बड़े ध्यान से उसका चेहरा देखा तो वह समझ गई कि यह मेरी गुम हुई बच्ची ही है!
अनु राधा अपनी बेटी को देखकर बहुत खुश हो गई। उसने उसको गले से लगाया। उसको उसका गुम हो गया जीवन फिर से मिला। अनुराधा को ऐसा लगा कि उसने दूसरो के बच्चो मे को पाला उनकी रक्षा की तो भगवान ने बदले में उसकी बच्ची को सुरक्षित रखा।
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