शिक्षाप्रद प्रेरक प्रसंग कहानी | Motivational Story

शिक्षाप्रद प्रेरक प्रसंग कहानी | Motivational Story 


 एक बहुत बड़ा व्यापारी था। उसका व्यापार बहुत फैला हुआ था और बहुत अच्छे से चलता था लेकिन फिर भी उसे चिंता रहती थी कि उसके बाद उसके व्यापार का क्या होगा? उसका बच्चा उस व्यापार को अच्छे से संभाल पाएगा या नहीं?


शिक्षाप्रद प्रेरक प्रसंग कहानी | Motivational Story



हालांकि उसके बेटे ने उससे कई बार कहा था कि मुझे भी व्यापार करने दीजिए। मुझे व्यापार करना आ गया है। मैं सिख चुका हूं लेकिन व्यापारी पता नहीं क्यों उसे कभी मौका देता ही नहीं था।


कुछ दिन बीते और एक दिन व्यापारी की तबीयत अचानक खराब हो गई उसे दिल का दौरा पड़ा। उसे icu में भरती करवाया गया।


व्यापारी का बेटा उसके दोस्त के साथ अपने पिता को मिलने आया। थोड़ी देर अपने पिता के पास बैठने के बाद बेटा और उसका दोस्त icu से बाहर आए। बाहर एक आइसक्रीम की दुकान देखकर व्यापारी का बेटा बोला चलो आइसक्रीम खाते है!  


उसके दोस्त को ये जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ की बाप icu में है , बिसनेस का क्या होगा पता नही? और उसका दोस्त ऐसी सिचुएशन में भी इतना बेफिक्र कैसे रह सकता है!


वो दोनो दुकान गए और आइसक्रीम लेकर खाने लगे। दोस्त से रहा नही गया तो उसने अपने दोस्त से उसके मन में क्या चल रहा था सब कुछ बताया।


व्यापारी का बेटा बड़ी शांति से बोला की दोस्त में परिस्थितियों को स्वीकार करना सिख गयाहुं।मैं श्रीकृष्ण का बड़ा भक्त हु इसलिए उनके बताए रास्ते पर चलता हूं। पहला रास्ता की कर्म करो और फल के बारे में मत सोचो।


दूसरा मैं तुम्हे एक कहानी बताता हूं जिसे सुनने के बाद तुम्हे सब समझ में आ जायेगा।


रुकमणी जी जोकि श्री कृष्ण की पत्नी थी उन्होंने जब अपने पहले बेटे को जन्म दिया जिसका नाम प्रद्युम्न था जन्म के कुछ ही दिनों बाद उसका अपहरण हो गया।


रुकमणी जी अपने बेटे के गम मे बहुत उदास रहने लगी, रोने लगी तब श्री कृष्ण जी ने उन्हें समझाया कि हमारा बेटा सब कुशल है जहां भी है, इसलिए तुम उसकी चिंता करना छोड़ दो खुश रहो और स्वस्थ रहो। 


यह उनसे खुद भगवान श्री कृष्ण ने कहा था फिर भी रुकमणी जी ने अपने बेटे की चिंता नहीं छोड़ी पर आखिरकार 18 साल बाद प्रद्युम्न घर वापस लौटा। वह विवाह करके लौटा था और समस्या यह थी उसने अपने से 20 साल बड़ी महिला से शादी की थी!

रुकमणी जी को इस बात की खुशी थी की उसका पुत्र वापस आ गया लेकिन इस बात से वो फिर से दुखी हो गई कि उसके पुत्र ने अपने से बड़ी उम्र की औरत से शादी क्यों की!


उनको दुखी देखकर श्री कृष्णा ने उन्हें समझाया जो हुआ अच्छा हुआ। उसके बारे में मत सोचो,उसे स्वीकार करो और खुश रहो।  बावजूद इसके कि भगवान ने फिर से उन्हें समझाया, रुकमणी जी को इस बात को स्वीकार करने में 8 वर्ष लग गए। इस तरह से रुकमणी जी ने अपने जीवन के 26 साल दुख में बिता दिए, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह परिस्थितियों को स्वीकार नहीं कर पाई।


यह कहानी खत्म करने के बाद व्यापारी के बेटे ने अपने दोस्त से कहा कि मैंने परिस्थितियों को स्वीकार करना सीख लिया है.. मैं अपने लक्ष्य पर ध्यान दूंगा, बिजनेस भी अच्छे से करूंगा और आगे जो होगा उसे स्वीकार करूंगा।


दोस्तों, छोटी सी ये कहानी हमें बहुत ही मूल्यवान सीख देती है कि अगर हम अपने जीवन में आने वाली घटनाओं को स्वीकार नहीं करते तो हमारा जीवन बहुत कठिन होगा और अगर हम उन्हें स्वीकार करते हैं तो हमारा जीवन बहुत सहज हो जाएगा।


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