मोरल कहानी : बक्सों रहस्य | Moral Kahaniya
चंद्रभान सुरेंद्र नगर का निवासी था वह पूर्वी दिशा के टापू के साथ व्यापार किया करता था। चंद्रभान ने अपने व्यापार में लाखों रुपए कमाए थे। समय के साथ-साथ उसका व्यापार कई देशों के साथ बढ़ता ही गया लेकिन पहले जिस भारी मात्रा में चंद्रभान को फायदा होता था अब वह कम होता जा रहा था!
बड़ी जांच पड़ताल करने के बाद चंद्रभान ने अनुभव किया कि उसके नौकरों की इमानदारी में कमी के कारण ही उसका मुनाफा घटा जा रहा है। इसलिए चंद्रभान ने एक विश्वासपात्र व्यक्ति को अपने माल की सुरक्षा के काम में नियुक्त करना चाहा और इस सिलसिले में चंद्रभान ने अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर उससे मदद मांगी। उसने लिखा की उसे अचानक एक ईमानदार व्यक्ति की जरूरत आ पड़ी है।
यह समाचार मिलते ही चंद्रभान के मित्र ने उसके पास विशाल और आनंद नाम के दो आदमियों को भेजा और संदेशा दिया कि दोनों में से चंद्रभान को जो भी आदमी पसंद आए वह उसको नौकरी पर रख ले।
चंद्रभान पहले उन दोनों में से आनंद को बंदरगाह के पास स्थित अपने माल के गोदाम में ले गया। माल गोदाम में चारों ओर लकड़ी से बने बक्सों में इधर-उधरफेहला हुआ था। चंद्रभान ने आनंद को वो बक्से दिखाकर समझाया - आनंद इन बक्सों में चांदी और अन्य धातु से बनाई गई चीजें हैं।
मैंने इन चीजों को अवंतीपुर के व्यापरी से खरीदा है और अब इन सारी चीजों को जल्दी ही जहाजों में लादकर रवाना करना होगा। फिलहाल इन चीजों को हमारे गोदाम के मुख्य कमरे में तरीके से एक के ऊपर एक रख लो और इनकी गिनती करके तुम्हें इसका हिसाब भी देना होगा। आनंद अब तुम समझ गए होगे कि तुम्हें क्या करना है? अब जाओ और अपना काम देखो।
इसके बाद चंद्रभान ने थोड़ी दूर पर खड़े चार आदमियों को बुलाकर आनंद से मिलवाया और कहा - ये अवंतीपुर के व्यापारी के आदमी हैं। यह लोग ही इन बक्सों को यहां पर लाए हैं। गोदाम के मुख्य कमरे में हमारा एक नौकर है। यह लोग इन बक्सों को वहां पर ले जाएंगे तब हमारा नौकर इन बक्सों को वहां पर तरीके से 1 के ऊपर 1 रखेगा। आनंद तुम वहीं पर खड़े रहकर सावधानी से बक्सों का हिसाब लेकर मेरे पास ले आना। यह कहकर चंद्रभान वहां से चला गया आनंद - जी श्रीमान कहकर अपना सर हिला दिया और वह भी वहां से चला गया।
तभी वह चार आदमी हांफते - हांफते बक्सों को उठाकर गोदाम के मुख्य कमरे तक ले आए। वहां पर चंद्रभान के एक नौकर ने आसानी से सभी बक्सों को उठाकर एक ऊपर एक तरीके से सजा दिया! आनंद बक्सों की गिनती करने लगा। थोड़ी देर बाद काम के समाप्त होते ही आनंद चंद्रभान के पास जाकर बोला मालिक मैंने सारे बक्सों को गोदाम में रखवा दिया है। कुल मिलाकर 150 बक्से हैं। इस पर चंद्रभान ने आनंद से कहा ठीक है तुम्हें काम पर नियुक्त करने से पहले हम तुमको सूचना भेजेंगे।
अगले दिन चंद्रभान ने बंदरगाह के पास एक दूसरे गोदाम में विशाल को ले जाकर उसे इधर उधर फैले हुए लकड़ी के बक्सों को दिखाया और विशाल से भी वही बातें कहीं जो बातें उसने आनंद से कही थी और चंद्रभान वहां से चला गया। गोदाम में पहुंचकर विशाल बक्सों की गिनती करने लगा। अचानक उसके मन में एक संदेश पैदा हुआ उसने देखा कि 4 आदमी बड़ी मुश्किल के साथ हंसते-हंसते जिन बक्सों को उठाकर मुख्य कमरे तक ले गए हैं उनको मुख्य कमरे में मौजूद एक नौकर बड़ी आसानी से कैसे एक के ऊपर एक रखकर तरीके से सजा रहा है!
काम के समाप्त होते ही विशाल चंद्रभान के पास पहुंचा और बोला मालिक कुल बक्सों की संख्या 150 है पर मैं यह नहीं जानता कि अवंतीपुर के उस व्यापारी के साथ आप का हिसाब किताब कैसा चलता है? पर श्रीमान मुझे उसकी ईमानदारी पर शक हो रहा है और इस बात की सूचना आप को देना मेरा कर्तव्य है।
इस पर चंद्रभान ने नकली गुस्सा दिखाते हुए विशाल से कहा - विशाल तुम्हें मेरे मित्र की इमानदारी पर शक कैसे हो रहा है? क्या तुम नहीं जानते किसी पर आरोप लगाना कीतना अपमानजनक है ?
उसने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा - श्रीमान आपने बताया था कि उन बसों में चांदी और अन्य धातुओं की चीजें भरी पड़ी है जो स्वाभाव भारी होती है। लेकिन मुझे लगता है कि व्यापारी ने बड़ी चालाकी के साथ आपको धोखा दिया है! श्रीमान उन बक्सों को गोदाम में हांफते - हांफते उठा कर लाने वाले चारों आदमी उसी व्यापारी के नौकर हैं और उन लोगों ने ऐसा नाटक किया है कि जैसे वो बक्से सचमुच बहुत भारी है। लेकिन महाशय ऐसी बात नहीं है वरना भला आपका एक नौकर इतनी आसानी के साथ उन्हें उठाकर एक के ऊपर एक तरीके से कैसे सजा सकता है? श्रीमान मुझे ऐसा मालूम होता है कि उन बक्सों के अंदर चांदी नहीं है! बल्कि घासफूस या कोई हलकी चीज है, जल्दी से मेरे साथ गोदाम में चलिए और उन बक्सों को खुलवा कर देख लीजिए।
विशाल का यह सुझाव सुनकर चंद्रभान मन ही मन हंस पड़ा और विशाल के कंधे पर थपकी देते हुए बोला विशाल तुम काफी कुशाग्र बुद्धि और सूक्ष्म दृष्टि रखने वाले आदमी हो। मैं तुमसे बड़ा प्रसन्न हूं। और सुनो विशाल बक्से ढोने वाले चारों आदमी और गोदाम के मुख्य कमरे में रहने वाला नौकर यह सब मेरे ही कर्मचारी है। नौकरी के लिए आए हुए तुम दोनों की अक्लमंदी और ईमानदारी की जांच करने के लिए मैंने यह परीक्षा ली थी और इस परीक्षा में तुम सफल हुए। मैं आज अपने मित्र के पास संदेशा भेजूंगा ही मैंने तुमको आज से ही काम पर लगा लिया है।
इस तरह विशाल ने यह जाने बिना ही की उसकी परीक्षा ली जा रही है उसमें सफलता प्राप्त की। ऐसा इसलिए कर पाया क्योकि उसने अपने मालिक का कहना तो सुना ही लेकिन अपने काम में उसने अपनी जागरूकता और बुद्धि इस्तेमाल किया।
कहानी की शिक्षा :-
किसी भी काम को भेड़चाल चलते हुए नही करना चाहिए। हर काम को ध्यान केन्दिरित कर और बुद्धि के प्रयोग से उसके परिणामो को पहले से बेहतर और त्रुटि रहित किया जा सकता हैं।
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