एक गुस्सैल विद्यार्थी की कहानी | Moral Story

 एक गुस्सैल विद्यार्थी की कहानी | Moral Story 


यह कहानी है एक विद्यार्थी की जिसकी एक गुरुकुल में नई नई भर्ती हुई थी। भर्ती होने के बाद विद्यार्थी ने देखा कि उस गुरुकुल का एक नियम है जिसे सभी लोग बहुत कड़ाई से अनुसरण करते हैं। इस नियम के मुताबिक सुबह उठते ही नहाने धोने के बाद सब को कम से कम आधा घंटा ध्यान यानी कि मेडिटेशन करना होता था।


एक गुस्सैल विद्यार्थी की कहानी | Moral Story



लेकिन इस विद्यार्थी की सबसे बड़ी समस्या यही थी कि वह किसी भी चीज में ध्यान नहीं लगा पाता था, हर छोटी मोटी ध्यान खींचने वाली चीजें उसे गुस्सा दिलाती थी।


नियम का अनुसरण करने के लिए उसने सब के साथ ध्यान लगाना शुरू किया। लेकिन अपने आदत के अनुसार वह 2 मिनट से ज्यादा ध्यान लगा नहीं पाता और 2 मिनट में गुस्से से अपनी आंखें खोल देता।


दो-तीन दिनों तक ऐसे ही चलता रहा। वह दो-तीन मिनट से ज्यादा ध्यान लगा ही नहीं पाता था। गुरुकुल के 1 गुरु ने इस बात पर गौर किया और उस विद्यार्थी को अपने पास बुला कर उससे उस की परेशानी पूछी।


विद्यार्थि ने गुरु से कहा कि जब भी में ध्यान लगाता हूं तो मुझे आस पास के लोगों के फुसफुसाने की आवाज आती है। जिससे मैं ध्यान नहीं लगा पाता और मुझे उन पर गुस्सा आ जाता है। अगर आप सभी को चेतावनी दे दे कि ध्यान के वक्त कोई भी थोड़ी सी भी आवाज ना करे तो शायद में ध्यान अच्छे से लगा पाऊंगा।


गुरुजी ने विद्यार्थी को समझाया की तुम कहीं पर भी चले जाओ लेकिन तुम्हें हर जगह ऐसी आवाजें परेशान करती रहेगी। तुम दुनिया को नहीं बदल सकते तुम्हें अपने आप को बदलना होगा। तुम्हें अपने गुस्से को काबू करना होगा।


 फिर भी अगर तुम आजमा ना चाहो तो तुम कल से उस पास वाली नदी के किनारे जाकर ध्यान लगाया करो जहां तुम्हें इंसानों की आवाज नहीं आएगी।


नदी किनारे जाकर ध्यान लगाने का सुझाव विद्यार्थी को पसंद आया और उसने अगले दिन सुबह नदी किनारे जाकर ध्यान लगाना शुरू किया। 4 - 5 मिनट ही हुए थे कि विद्यार्थी को एक घोड़े की आवाज सुनाई दी जिससे उसका ध्यान टूट गया और उसे फिर से गुस्सा आने लगा। नदी के किनारे एक आदमी अपने घोड़े पर सवार होकर घोड़ा चलाना सीखने आया हुआ था।


अगले दो-तीन दिनों तक ऐसे ही चलता रहा और वहां पर भी वह ध्यान लगाने में सफल नहीं हुआ। फिर उसने सोचा क्यों ना मैं नदी के बीचो-बीच जाकर ध्यान लगाऊं? वहां पर तो उसे किसी की भी आवाज सुनाई नहीं देगी।


अगले दिन से विद्यार्थी एक नाव में बैठा नदी के बीचो-बीच गया और वहां पर ध्यान लगाना शुरू किया। कुछ दिनों तक यह चलता रहा और वह अच्छे से ध्यान लगाने लगा। लेकिन एक दिन जब वह ध्यान लगा रहा था तो उसे पानी के छप छप की आवाज सुनाई दी।  उससे डिस्टर्ब हो कर जब उन3 ने आंखें खोली तो देखा कि एक नाव उसकी नाव की तरफ आ रही है।


उसने जोर से आवाज लगाई और बोला कि अपने नाव को इस तरफ मत लेकर आओ कहीं और लेकर जाओ लेकिन उस गांव में सुनने वाला कोई भी नहीं था और वह नाव धीरे-धीरे उसकी तरफ आकार सीधे उसकी नाव से टकरा गई।


उसे बहुत गुस्सा आया लेकिन वह गुस्सा निकाले भी तो किस पर? नाव में कोई भी नहीं था! दोनों नाव को लेकर वो किनारे पर पहुंचा। जैसे ही वह किनारे तक आया उसके तरफ एक आदमी दौड़ता हुआ यह उसी आदमी के नाम है वह आदमी पर गुस्सा निकालने लगा और उसे बुरा भला कहने लगा।


उस आदमी ने विद्यार्थी से कहा कि मैं तो सिर्फ तुम्हें पूछ रहा था कि क्या तुमने किसी आदमी को इस तरफ आते हुए देखा है? मैं उसकी तलाश कर रहा हूं और तुम तो मुझे भी भला बुरा कहने लगे!


जब विद्यार्थी को पता चला कि वह नाव उसकी नहीं है तो उसका थोड़ा गुस्सा शांत हो गया। थोड़ी देर बाद वह नाव जिस दिशा से आई थी उस दिशा में गया और वहां जाकर पता किया कि यह नाव किसकी है? तो उसे पता चला कि यह नाव रस्सी से बंधी हुई थी और तेज हवाओं के कारण वह छूट कर उसकी तरफ बह आई थी।


यह जानने के बाद उसका बचा कुचा सारा गुस्सा शांत हो गया क्योंकि यह घटना किसी इंसान के द्वारा नहीं किंतु प्रकृति के द्वारा की गई थी।


 थोड़ा शांत रहने पर और थोड़ा सोचने पर उस विद्यार्थी को समझ में आया कि उसे तभी गुस्सा आता है जब किसी घटना से वह परेशान होता है और वह इंसानों द्वारा की गई हो लेकिन वहीं घटना अगर अपने आप होती है या कुदरत द्वारा की जाती है तो उसे गुस्सा नहीं आता।


 उसे अपने गुस्से पर काबू करने के लिए यह एक रामबाण मिल गया और उसे उस दिन के बाद जब भी गुस्सा आता तो उसने यह सोचना शुरू कर दिया कि यह सब कुदरत द्वारा हो रहा है ना की किसी इंसानों द्वारा और उसका गुस्सा शांत हो जाता और वह अपना काम अच्छे से कर पाता।


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