दुर्जन का साथ : नानी की कहानी | Nani ki Kahani

 दुर्जन का साथ : नानी की कहानी | Nani ki Kahani 


एक जंगल में एक चंदन का पेड़ था। एक तरफ बाकी सब पेड़ थे जो समूह में, झुंड में थे। वही यह चंदन का पेड़ था जो अकेला था।


की कहानी | Nani ki Kahani


सालों तक इसी तरह से अकेले रहने की वजह से चंदन अपने अकेलेपन से परेशान हो चुका था। उसे भी अब विचार आते थे कि उसके साथ भी कोई खड़ा हो, या कम से कम उसका कोई दोस्त हो जिससे वो इतने बड़े जंगल में खुद को अकेला ना महसूस करें।


एक दिन उसने अपने सामने कुछ अंतर पर खड़े पलाश के पेड़ से कहा :

तुम तो दिखने में बहुत सुंदर हो। तुम्हारे कितने सुंदर फूल है। मुझे पता है तुम्हारे कई सारे मित्र होंगे लेकिन अगर तुम चाहो तो मैं भी तुम्हारा मित्र बनना चाहता हूं।


पलाश का पेड़ मुस्कुराया और बोला : हां हां क्यों नहीं? बल्कि मुझे तुम्हें मित्र बना कर खुशी होगी क्योंकि तुम ज्यादा सुंदर ना सही लेकिन तुम्हारी खुशबू इस पूरे जंगल को  महकाती है। तुम्हारी वजह से हमारे आसपास की हवा खुशनुमा रहती है और हमारा दिन अच्छा गुजरता है।


पलाश की मीठी मीठी बातें सुनकर चंदन के पेड़ को बहुत अच्छा लगा। उसे लगा कि आखिरकार वह अब अकेला नहीं रहेगा और पलाश उसका सच्चा मित्र बन पाएगा। लेकिन वह कितना गलत सोच रहा था यह उसे अपने भविष्य में पता चलने वाला था!


एक दिन एक लकड़हारा पलाश के पेड़ की छाया में आराम कर रहा था। लकड़हारा काफी चिंता में दिखाई दे रहा था। पलाश ने उसे उसकी चिंता का कारण पूछा तो लक्कड़हारे ने उसे बताया की वो जंगल से सुखी लकड़ियां काटकर उन्हें बाजार में बेचता है और उनसे पैसे कमाता है और इस तरह से वह अपना घर चला पाता है।


लेकिन आज पूरा दिन जंगल में घूमता रहा फिर भी उसे कोई भी सूखा पेड़ नहीं मिला जिसकी लकड़ियो को वो काट सकें। आखिरकार थक कर वो यहां आराम करने बैठ गया।



पलाश लकड़हारे की बातें सुनकर बोला : बस इतनी सी बात? माना कि तुम्हे सुखी लकड़ीया नहीं मिली मगर तुम्हें कुछ कीमती लकड़िया मिल जाएगी जिन्हे बेचकर तुम्हें अच्छे खासे पैसे मिले तो तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी। 


लक्कड़हारे ने कहा : तुम कह तो ठीक रहे हो लेकिन मुझे कीमती लकड़ीया मिलेगी कहां से? 


पलाश के पेड़ ने लकड़हारे को अपने सामने कुछ दूरी पर वही चंदन का पेड़ दिखाया जिससे उसने थोड़े दिनों पहले ही मित्रता की थी! 


लक्कड़ हारा तुरंत चंदन के पेड़ के पास गया और उससे थोड़ी लकड़ी का काट ली।


चंदन का पेड़ पलाश की धोखेबाजी से काफी दुखी हो गया। उसने सोचा की उसने पलाश की ऊपरी सुंदरता देखकर उससे दोस्ती की इससे अच्छा वह उसको भीतर से जानने के बाद दोस्ती करता तो अच्छा होता। उसने सोचा जरूर पलाश के पेड़ इस धोखेबाजी का जवाब देगा।


लकड़हारे ने लकड़िया तो काट ली थी लेकिन वह कुछ सोच रहा था और चिंतित दिखाई दे रहा था। चंदन के पेड़ ने उससे पूछा अब क्या हुआ? तुम्हें तो लकड़िया मिल गई है फिर क्यों चिंता में हो?


लकड़हारा बोला मुझे लकड़िया तो मिल गई है लेकिन जल्दबाजी में मैं घर से रस्सी लाना ही भूल गया हूं। अब मैं यह लकड़िया कैसे अपने घर तक ले जा पाऊंगा?


चंदन को जल्द ही पलाश से बदला लेने का मौका मिल गया... चंदन ने लकड़हारे को कहा : इसमें क्या समस्या है? तुम वह जो सामने पलाश का पेड़ है उसकी जड़े निकाल लो वह जड़े काफी अच्छी रस्सी की तरह मजबूत होती है। उनका इस्तेमाल करके तुम लकड़ियां बांधकर अपने घर तक ले जा सकते हो!


लकड़हारा चंदन के पेड़ के दिए सुझाव से खुश हो गया और तुरंत पलाश के पेड़ को जड़ से उखाड़ कर उसकी जड़ों को रस्सी की तरह इस्तेमाल करके लकड़ियों को बांधकर अपने घर लौट गया।


पलाश का पेड़ जड़ से उखड़ कर जब अपनी आखिरी सांसे गिन रहा था तब चंदन के पेड़ ने उससे धोखेबाजी का कारण पूछा। तो उसने बताया कि वह चंदन की खुशबू से जलता था क्योंकि उसके फूलों की खुशबू चंदन की खुशबू की वजह से दब जाती थी और सभी चंदन की खुशबू की तारीफ करते थे बजाय उसके फूलों की खुशबू की।


उस दिन से चंदन के पेड़ ने तय किया कि वह किसी को भी अच्छी तरह से जाने बगैर कभी दोस्ती नहीं करेगा। उसे ये भी समझ में आगया की दुर्जन के साथ से अच्छा अकेला रहना ही होता है।  तबसे चंदन का पेड़ जंगल में अकेला ही रहता।


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