Tenali Rama stories in Hindi | तेनाली राम की कहानियां

 Tenali Rama stories in Hindi | तेनाली राम की कहानियां


राजा कृष्णदेव राय के शासनकाल में उनके साथ तेनालीराम जैसे विद्वान वह करते थे। तेनालीराम अपनी तिष्ण बुद्धि और समझदारी के कारण चारों तरफ प्रसिद्ध थे। कृष्णदेव राय को भी अपने दरबार का हिस्सा तेनालीराम पर बहुत गर्व था।


Tenali Rama stories in Hindi | तेनाली राम की कहानियां


एक बार कृष्ण देव राय के दरबार में एक दूसरे राज्य से एक पंडित आया। पंडित बड़ा विद्वान और कई भाषाओं का जानकार था।


दरबार में आकर पंडित ने कृष्णदेवराय से कहा : महाराज मैंने सुना है कि आप के दरबारी काफी बुद्धिशाली है और हर प्रश्न का सही उत्तर दे देते हैं।


कृष्णदेव राय के मुख पर एक बड़ा स्मिथ आया उन्होंने तेनालीराम की तरफ देखकर गर्व से कहा इस बात में कोई शंका नहीं है।


पंडित ने कहा अगर ऐसी बात है तो क्या आप के दरबारी या आप कोई भी यह बता सकता है कि मेरी मातृभाषा कौन सी है? इतना कहकर पंडित ने अलग-अलग प्रांतीय भाषाओं में कुछ बोलना शुरू किया। उन्होंने मराठी, गुजराती, हिंदी तेलुगू, तमिल, बंगाली ऐसी कई भाषाओं में बात की।


कृष्णदेव राय और सभी दरबारी यह देखकर हैरान थे कि वह जिस भी भाषा में बोलते थे इस तरह से बोलते थे जैसे लगता था कि वही उनकी मातृभाषा है। पंडित जी की हर एक भाषा पर पकड़ बहुत मजबूत थी। सिर्फ उन्हें सुनकर कोई भी यह नहीं बता सकता था कि उनकी मातृभाषा कौन सी है?


कृष्णदेव राय और सभी दरबारी जब इस प्रश्न का उत्तर दे नहीं पाए तब कृष्णदेव राय ने बड़ी उम्मीद से तेनाली रामा की तरफ देखा।


तेनालीराम ने कहा मुझे कुछ दिनों की मोहलत दे दीजिए मैं इस प्रश्न का उत्तर जरूर दे दूंगा। तब तक आप पंडित जी को हमारे राज्य में अतिथि की तरह रहने का आमंत्रण दीजिए और मेरी इच्छा है कि मैं इतने विद्वान पंडित जी की कुछ दिनों तक सेवा करू।


कृष्णदेव राय ने पंडित जी को अपने राज्य में मेहमान की तरह रहने के लिए कहा, पंडित जी मान गए। उस दिन से पंडित जी को बड़े ठाट बाट से राज महल में अतिथि की तरह रखा जाने लगा और तेनालीराम खुद उनकी सेवा में लगे।


तेनालीराम की बुद्धिमानी 


एक दिन जब पंडित जी एक पेड़ के नीचे बैठे थे तेनालीरामा ने उनके पैर छूने के बहाने से उनके पैर में कांटा चुभा दिया। दर्द किसे पंडित जी चिलाउट और तमिल में अम्मा अम्मा बोलने लगे।


दो-तीन दिनों बाद जब फिर से सभा आरंभ हुई तो पंडित जी ने कहा अब तो कई दिन बीत चुके हैं, क्या आप में से कोई मेरे सवाल का जवाब दे पाएगा या नहीं?


तेनालीराम खड़े हुए सबके सामने बोले पंडित जी आप की मातृभाषा तमिल है।


इससे पहले की कोई कुछ बोलता पंडित जी खुद ही ताली बजाने लगे और तेनालीराम को शाबाशी देते हुए कहा कि तुम बहुत बुद्धिमान हो मुझे बताओ कि तुम्हें कैसे पता चला कि मेरी मातृभाषा तमिल है कोई और नहीं?


तेनालीराम ने कहा बड़ा आसान था पंडित जी जिस दिन मैंने आपके पैर में कांटा चुभ आया था तब आपके मुंह से जो शब्द निकले थे वह तमिल में थे। जब मनुष्य तकलीफ में होता है तब वह सब कुछ भूल कर सिर्फ अपनि मातृभाषा को याद रखता है और उस दिन भी वही हुआ! कांटे की चुभन से आपने अपनी माता और अपनि मातृभाषा दोनों को याद किया इसलिए मुझे पता चल गया कि आप की भाषा तमिल है।


तेनालीराम ने अपनी समझदारी से एक बार फिर अपने राज्य की लाज रखली। कृष्णदेव राय ने खुश होकर उन्हें शाबाशी दी और एक बड़ा इनाम भी।


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