कहानी चार रक्षकों की | Hindi Kahaniyan

 कहानी चार रक्षकों की | Hindi Kahaniyan 


चंद्रभान नाम का एक राजा था। उनका जो राज्य था बड़ा ही समृद्ध था राज्य के प्रजा प्रसन्न और संतुष्ट थी। उनका राज्य दिन दुगनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा था। किसी तरह का कोई झगड़ा उस राज्य में नहीं होता था सब मिलजुलकर हंसी खुशी से रहते थे।


कहानी चार रक्षकों की | Hindi Kahaniyan


इस बड़े राज्य के बिल्कुल पड़ोस में एक छोटा राज्य था जहां कृष्ण देवराय नाम का राजा राज्य करता था। इस राज्य में आए दिन प्रजा के बीच क्लेश होते रहते थे। कोई भी इस राज्य में संतुष्ट नहीं था यहां तक की खुद राजा भी हमेशा चिंतित रहता था।


कृष्णदेवराय अपने राज्य के हालत बदलना चाहता था। उसे अपने पड़ोसी राज्य के अच्छे हालात के बारे में पता था इसलिए वो

चंद्रभान से मिलकर उनकी खुशहाली का कारण जानना चाहता था।


एक बार चंद्रभान से कृष्णदेवराय की मुलाकात  तय हुई। चंद्रभान ने  कृष्णदेव राय का स्वागत दिल खोलकर किया। भोजन करने के बाद चंद्रभान कृष्णदेवराय को अपने राज्य के सेट पर लेकर गया। वहां भी गए कृष्ण देव राय ने देखा कि हर जगह लोग बड़े सुखी और संतुष्ट है।


कृष्णदेव राय चंद्रभान की प्रशंसा करते हुए कहा यह तो मानना पड़ेगा क्या आपने अपनी प्रजा को बड़े सुख में रखा है और उनके बीच शायद कभी झगड़े होते भी हो गया नहीं। मेरा राज्य छोटा है फिर भी आए दिन मेरी प्रजा में झगड़ा होता रहता है। मुझे समझ नहीं आता कि मैं क्या करूं जिससे मेरी प्रजा भी आपके राज्य की प्रजा की तरह सुखी और खुशहाल हो जाए?


चंद्रभान मुस्कुराया और बोला यह तो सच है मेरी प्रजा खुशहाल तो है और यह सिर्फ मेरे चार रक्षकों की वजह से हो पाया है!


कृष्णदेव राय आश्चर्यचकित होकर बोला आप क्या कह रहे हो ? मेरे पास रक्षकों की पूरी फौज है और आप कह रहे हो कि आपके चार रक्षकों की वजह से आपका राज्य इतना सुखी है यह कैसे हो सकता है?


चंद्रभान बोला हां चार रक्षक! लेकिन ये चार रक्षक कोई सामान्य नहीं है यह बड़े अद्भुत रक्षक है। चलो मैं तुम्हें इन चार रक्षकों के बारे में बताता हूं।


मेरा पहला रक्षक है सत्य। रक्षक मुझे झूठ बोलने से रोकता है इसलिए मेरे प्रजा में विश्वास बना रहता है कि राजा जो हमेशा सत्य बोलता है वह किसी का बुरा या असत्य नहीं करेगा।


मेरा दूसरा रक्षक है प्रेम। यह रक्षक मुझे अपने प्रजा से घृणा करने से रोकता है जिससे मैं मेरी प्रजा का दिल जीत पाता हूं।


कृष्णदेवराय उत्साहित होकर बोला और तीसरा रक्षक कौन है?


मेरा तीसरा रक्षक है त्याग। इसी रक्षक के बदौलत में मैं लालच का त्याग करके अपने प्रजा कहित हमेशा सोच सकता हूं। हर राजा के पास यह रक्षक होना चाहिए जिससे वह स्वार्थी ना होकर प्रजा की भलाई के बारे में पहले सोचे। जो राजा स्वार्थी होता है वह हमेशा अपने खजाने को भरने की फिराक में रहता है उसे अपनी प्रजा की कोई पड़ी नहीं होती। 


आखरी और चौथा रक्षक है न्याय। जब प्रजा को एक राजा पर ये भरोसा हो जाए की राजा किसी के साथ अन्याय नहीं होने देते तब प्रजा खुद भी न्यायसंगत व्यवहार करने लगती है। 


इस तरह मेरे ये चार रक्षक मेरे पूरे राज्य को खुशहाल बनाए रखते है।


कृष्णदेवराय को अब अच्छे से समझ में आ गया की उसे अपने राज्य की परिस्थिति बदलने के लिए क्या करना होगा? उसने चंद्रभान को आभार प्रकट किया और प्रसन्न मन से अपने राज्य लोट गया। 


कहानी की सिख


दोस्तों, ये चार रक्षक सिर्फ किसी राज्य को ही खुशहाल बना सकते है ऐसा नहीं है बल्कि ये किसी परिवार,संगठन,गांव, कंपनी को भी खुशहाल बना सकते है इसलिए अपने जीवन में सत्य,प्रेम,त्याग और न्याय को साथ लेकर आगे बढ़े।


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