बेटी तो पराई होती है : एक इमोशनल कहानी | Veri emotional story in Hindi
एक शहर में अनिल नाम का एक इंसान रहता था। अनिल एक कपड़ों की दुकान पर काम करता था। उसकी बहुत साल पहले शादी हो गई थी। अनिल को हमेशा से लड़का चाहिए था।
लड़का यह वंश का कुलदीपक होता है। पिता का नाम रोशन करता है,और बुढ़ापे का सहारा होता है। पर लड़की शादी करके चली जाती है ऐसी सोच रखनेवाला वह पड़ोसियों को भी यह बात बताता था।
शादी के कुछ साल बाद उसे 2 लड़के हुए बड़े बेटे का नाम करण और छोटे बेटे का नाम किशन रखा। बाद में कुछ सालों बाद उसकी पत्नी का निधन हो गया! उसके बाद उसीने उन दोनों बेटों का ख्याल रखा। समय बिता और उसके दोनों बेटे बड़े हो गए और अब दोनों बेटे नौकरी कर रहे थे।
दोनों की शादी भी हो गई। शादी होने के बाद भी वह सब एक साथ ही रहते थे। कुछ साल एक साथ खुशी में गए लेकिन बाद में दोनों भाई एक दूसरे के साथ झगड़ा करने लगे ।
दोनों बहुओं में छोटी-छोटी बातों पर मतभेद होने लगी। यह सब देखकर अनिल को बहुत बुरा लगता था। अब दोनों ने अलग रहने का निर्णय लिया और वह अलग हो गए। फिर पिताजी का ख्याल कौन रखेगा ऐसा सवाल निर्माण हुआ। दोनों बेटे एक एक महीना संभालेंगे ऐसा तय किया।
अनिल एक बेटे के साथ 1 महीने के लिए रहने लगा फिर दूसरे बेटे के पास एक महीना ऐसा उसका बटवारा हुआ। पर जैसे-जैसे वक्त बीतता गया वैसे-वैसे बहुओ और बेटों में अनिल को लेकर झगड़ा होने लगा। दोनों बेटों के घर में झगड़े का कारण अनिल रहने लगा। यह बात अनिल को अच्छे से समझ आई थी।
अब अनिल को पुरानी यादें याद आने लगी थी। उसने जिंदगी में कितनी बड़ी गलती की थी यह उसे अब समझ में आ रही थी। पर अब इसका क्या फायदा? आखिर दोनों बेटों ने पिताजी को वृद्धाश्रम भेजने का निर्णय लिया। एक दिन दोनों ही पिताजी को लेकर वरुद्धआश्रम में गए। वहां जाने पर सभी औपचारिकता पूरी कर के पिताजी को मिलकर वह दोनों अपने अपने घर वापस चले गए।
बेटे घर जाने के बाद अनिल बहुत रोने लगा। उसके बाद वरुद्धआश्रम में के कई लोगो ने उसे समझाया, पर वह बहुत दुखी हो गया था। अनिल को वृद्ध आश्रम में आकर 8-10 दिन हो गए थे। वह किसी से भी बातचीत नहीं करता था और एक पेड़ के नीचे बैठकर विचार में मग्न रहता था। वहां के लोग उसे पूछते थे पर उसने किसी को भी कुछ नहीं बताया।
कुछ दिनों में वह एक व्यक्ति से थोड़ा बहुत बोलने लगा।बाद में दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई। एक दिन वह दोनों बैठे थे तब वह व्यक्ति अनिल को अपनी कहानी बताने लगा। वह बोला कि मुझे एक ही बेटा है। वह मेरे साथ छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करता था। इस बात को मैं बहुत ऊब गया था। उस वजह से मैंने वृद्ध आश्रम में रहने का निर्णय लिया। मुझे कभी-कभी लगता था कि मुझे बेटे के साथ एक बेटी भी होती तो कितना अच्छा होता। कदाचित आज वह मेरे बुढ़ापे की लाठी बन सकती।
उसका बोलना सुनकर अनिल और ज्यादा दुखी होगा और वह बहुत गहरे विचारों में खो गया।अनिल को दुखी अवस्था में देखकर उसके दोस्त ने इंसान ने पूछा आप क्या सोच रहे हो? आपके सामने देखो उस दिखने वाले दो व्यक्तियों में से एक हमारे वृद्धाश्रम के मालिक है। उनका नाम कैलाश सेठ और दूसरी उनकी बेटी है उसका नाम आराध्या है। वृद्ध आश्रम का सारा काम उनकी बेटी संभालती है। कैलाश सेठ इनको एक मात्र बेटी थी। बेटी मां और पिताजी से बहुत प्यार करती है उतना ही प्यार वह वृद्ध आश्रम के हर एक व्यक्ति से प्यार करती है!
अनिल सिर्फ उसकी तरफ देखते ही रह गया और उसका मन और भी ज्यादा दुखी होने लगा। रात होने लगी थी, हर एक वृद्ध अपने अपने रूम में जाने लगे, अनिल भी उसके रूम में जाता है। रात का खाना जल्दी खाकर सब लोग सो जाते हैं। अनिल को उसका भूतकाल याद आता है। अनिल की शादी होने के बाद उसे पहली बेटी हुई थी। उस वक्त उसे बहुत गुस्सा आया था। पत्नी के मना करने के बाद भी गुस्से में उसने बेटी को उठाया और दूर जाकर उसे वहां छोड़ आया ! पर अब पश्चाताप करने के सिवाय रास्ता भी नहीं था।
अनिल को रात भर नींद नहीं आई। दूसरे दिन वृद्ध आश्रम में एक छोटा सा प्रोग्राम था। हर एक जन जल्दी उठता है और अपने अपने काम में लग जाते हैं। दोपहर को सब लोग हॉल में एकत्रित हुए। कैलाश सेठ और आराध्या भी आए हैं वहां पर। प्रोग्राम चालू था तब कैलाश सेठ का ध्यान दो तीन बार अनिल की तरफ गया।अनिल उनको बहुत उदास बैठा हुआ दिखा
।उनको लगता है कि शायद उसकी तबीयत अच्छी नहीं होगी? प्रोग्राम खत्म होने के बाद वह अनिल से बात करने के लिए उनके पास जाते हैं वह अनिल को दुखी होनेका कारण पूछते है।तभी अनिल बहुत रोने लगता है,और थोड़ी देर बाद वह अपनी पूरी कहानी उनको बताता है। कि मुझे भी पहली बेटी हुई थी पर मुझे बेटी नहीं चाहिए थी। इसलिए मैं गुस्से में आकर उसे छोड़ कर आया। आज जब मैंने आपको आपकी बेटी के साथ देखा तो तभी मुझे समझ आया कि बेटी कितना प्यार करती है।मेरी बेटी भी मेरे साथ होती तो मुझे यहां वृद्ध आश्रम में रहना नहीं पड़ता।मेरे दोनों बेटों ने मुझे दुख के सिवा कुछ भी नहीं दिया। मैंने किये हुऐ पापोकी सझा आज मैं भुगत रहा हूं।
अनिल की सब बातें सुनकर कैलाश सेठ को मन में बहुत दुख हो रहा था। दुखी होकर वो अनिल को बोलते हैं कि, यह मेरी बेटी नहीं है। मुझे यह नदी किनारे मिली थी।मैं उसे घर ले आया और बहुत प्यार से बड़ा किया मैं और मेरी पत्नी उससे बहुत प्यार करते हैं और वह हम दोनों से भी उतना ही प्यार करती है।
पूरी कहानी सुनने के बाद अनिल बोलता है कि मैंने मेरी बेटी को भी नदी के किनारे मंदिर के पास छोड़ा था। यह सुनकर कैलाश सेठ को थोड़ा गुस्सा आया और वह वहां से निकलने ही वाले थे, तभी उसी वक्त वह अनिल को पूछते हैं आपकी बेटी का बर्थ मार्क वगैरह आप बता सकते हो क्या? अनिल ने तुरंत जवाब दिया हां बता सकता हूं। उसके बाए हाथ पर और पैर पर एक एक उंगली ज्यादा थी। यह जवाब सुनकर कैलाश सेठ को विश्वास होता है कि आराध्य उसी की ही बेटी है!
यह सब सुनकर कैलाश सेट वहां से चला जाता है। वह चले जाने पर आराध्या वहां पहुंचती है और वह अनिल को बोलती है कि मैंने आप दोनों की पूरी बात सुन ली है। आपने मेरे बारे में जो भी कहा वह सुनकर मेरा मन बहुत दुखा है। एक पिता खुद की बेटी के बारे में ऐसा निर्णय ले सकते हैं यह सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा। आपने जो भी किया वह बहुत गलत था। आपने मुझे बेटी बोलने का अधिकार खो दिया है। मैं आपकी बेटी होकर भी आप मुझे रास्ते पर छोड़ कर चले गये थे। और मैं उनकी बेटी ना होते हुए भी उन्होंने मुझ पर जान निछावर कर दिया इसलिए वही मेरे सच्चे पिता है। आप इस वृद्ध आश्रम में रह सकते हैं पर,आज आपने उनके सामने जो बोला है वह फिर कभी भी उनके सामने मत बोलिएगा। क्योंकि आज तक मैंने उनको इतना दुखी कभी भी नहीं देखा। इतना बोलकर आराध्या वहां से चली गई।
अनिल सिर्फ आंखों में आंसू ला कर उसकी तरफ देखता रह गया और अपने नसीब को दोष देता रहा। दूसरे दिन सुबह किसी को भी ना बताते हुए अनिल वृद्धाश्रम छोड़कर चला गया!
