आशीर्वाद या श्राप ? पौराणिक कहानी | pauranik kahani
स्वर्ग में भ्रमण कर रहे नारद जी ये देखकर बड़े हैरान थे कि धरती पर वह लोग तो बहुत खुश है जो धन के पीछे भागते हैं और वे लोग बड़े दुखी है जो भगवान की भक्ति करते हैं!
इस विचार से ग्रस्त नारद जी काफी परेशान हो गए और जब उनसे रहा नहीं गया तो वह सीधे पहुंचे बैकुंठधाम इस प्रश्न का समाधान पाने के लिए भगवान विष्णु के पास।
नारदजी जैसे ही भगवान विष्णु जी के धाम पहुंचे भगवान विष्णु उनके मन की बात पहले से जानते थे। विष्णु भगवान ने नारद से कहा चलो धरती लोक पर चलते हैं और आपके प्रश्न का समाधान पाते है।
दोनों, साधु का भेष धारण कर धरती लोक पर पहुंचे। वह दोनों सबसे पहले एक बड़े व्यापारी के द्वार पर भिक्षा मांगने के लिए गए। उन दोनों को अपने द्वार पर देखकर व्यापारी बड़ा गुस्सा हुआ। उन्हें भला-बुरा कहा और बिना कुछ दिए उनको वहां से जाने के लिए कहा।
जाते-जाते साधु के रूप में भगवान विष्णु ने उसे आशीर्वाद दिया कि तुम्हें और भी ज्यादा धन मिले! नारद जी को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन वह कुछ नहीं बोले और भगवान विष्णु के साथ चलते रहे।
थोड़ी देर बाद वह एक बूढ़ी मां की कुटिया पर पहुंचे। वह गरीब बूढ़ी एक छोटी सी कुटिया में रहती थी। उसके यहां जाकर जब दोनों साधुओं ने भिक्षा मांगी तो बूढ़ी मां बोली। मेरे पास तो आप लोगों को देने के लिए ज्यादा कुछ है नहीं लेकिन हां मेरे पास एक गाय है जो दूध देती है अगर आप चाहो तो मैं उस गाय का दूध दोह कर लाती हूं। आप दोनों के लिए उसे पीकर अपनी भूख शांत कर सकते।
साधुओं के हा कहने पर बूढ़ी मां ने दोनों के लिए दूध का इंतजाम कर दिया। खुश होकर साधु के भेष में विष्णु भगवान ने जब बूढी से कहा कि बताओ तुम्हें क्या चाहिए? तो बूढ़ी मां ने कहा कि मुझे कुछ भी नहीं चाहिए बस आप आशीर्वाद दीजिए, मेरे लिए इतना काफी है।
आशीर्वाद देकर दोनों साधु वहां से जाने लगे तब जाते-जाते विष्णु भगवान ने बूढ़ी मां से कहा कि तुम्हारी गाय कुछ दिनों में मरने वाली हैं। वहां से थोड़ा आगे जाने पर नारद जी बड़े परेशान हो गए और विष्णु भगवान से बोले यह कैसा न्याय है भगवान आपका? जिस व्यापारी ने हमारा इतना अपमान किया, हमें गालियां दी, आपने उसे और ज्यादा धन पाने का आशीर्वाद दिया! और इस बूढ़ी मां को जिसने हमारी इतनी सेवा की हमारे लिए दूध की व्यवस्था की उसे आप कहते हैं कि उसकी गाय जो कि उसके जीवन का आखिरी सहारा है वह भी मर जाएगी, ऐसा क्यों?
नारद जी के सवालों को शांत करने के लिए भगवान जी ने चेहरे पर मुस्कान के साथ कहा कि मैंने उस व्यापारी को जो आशीर्वाद दिया दरअसल वो उसके लिए शाप था! उस व्यापारी का मन पूरी तरह से धन कमाने में फंसा हुआ है और अगर उसे और ज्यादा धन मिलेगा तो वह आखरी समय तक उसी धन के पीछे भागता रहेगा और अगले जन्म में सांप बनकर उसके पास कुंडली मार कर बैठा रहेगा!
और रही उस बूढ़ी मां की बात तो कुछ बूढ़ी मां का पूरा ध्यान अच्छे कामों में और भगवान भक्ति में था। हां सिर्फ थोड़ा सा मन उसका उस गाय में अटका हुआ था और वह अपने आखिरी समय में उस गाय के मोह में यह चिंता करती रहती कि उसके जाने के बाद इस गाय का क्या होगा? क्या कोई उसे हानि पहुंचाएगा या मार डालेगा? और वह पूरी तरह से मुक्त नहीं हो पाती। बस यही कारण था कि मैं चाहता हूं की आखिरी समय में उसका ध्यान पूरी तरह मेरी तरफ रहे ना की इस गाय की तरफ।
भगवान विष्णु के समझाने के बाद और इस पूरी घटना के बाद नारद जी का मन पूरी तरह से शांत हो गया और वह खुशी-खुशी स्वर्ग लोग लौट गए।
दोस्तों, छोटी सी ये कहानी हमें कहती है की हमें अपना जीवन अच्छे कामों में समर्पित करना चाहिए ताकि अंत के समय में भी हम अच्छे कामों के बारे में सोचें और भगवान के बारे में सोचे और इस जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो सके।
