शांति की प्राप्ति: जैन कथा 1
ज़ेन धर्म के प्रसिद्द कथाएँ हमें अपने जीवन की मूलभूत सत्यता को समझाती हैं। ये कथाएँ हमें बोधगम्य तत्त्वों को सुन्दरता और सरलता के साथ सिखाती हैं। चलिए, हम कुछ ऐसी प्रसिद्द ज़ेन कथा का आनंद लें जो हमें जीवन की महत्वपूर्ण सीख सिखाए।
एक युवक ने एक प्रमुख ज़ेन गुरु के पास आकर सवाल पूछा, "गुरुजी, मुझे शांति की प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए?" गुरुजी ने मुस्कराते हुए कहा, "चलो, मैं तुम्हें एक कठिनाई के रास्ते पर ले चलता हूँ।"
युवक ने गुरुजी की ओर हैरानी से देखा और सोचा, "कठिनाई? लेकिन मैं तो शांति चाहता हूँ!" फिर भी, उसने गुरुजी के पीछे चलना शुरू कर दिया।
गुरुजी ने यात्रा के दौरान एक पहाड़ी के ऊपर चढ़ाई की और उसे बताया, "यह एक बड़ी पत्थर है, जिसे तुम्हें नीचे ढकेलना होगा।" युवक ने गुरुजी के कहे अनुसार पत्थर को ढकेलना शुरू किया। यह कार्य बहुत मुश्किल था और उसे काफी समय लग गया। धीरे-धीरे, वह पत्थर नीचे ढकेलता रहा और अंत में उसने उसे हटा दिया।
उसके बाद गुरुजी ने उसे एक और पत्थर के पास ले जाकर कहा, "अब तुम्हें इसे उठाना है और उसे वहा ले जाना है।" युवक ने गुरुजी के कहे अनुसार पत्थर को उठाने की कोशिश की, लेकिन वह बहुत भारी था और उसे उठाना असंभव लग रहा था। वह कुछ समय प्रयास करने के बाद थक गया और निराश हो गया।
गुरुजी ने मुस्कराते हुए कहा, "तुम देखो, तुमने पहले पत्थर को ढकेला, लेकिन तुम उसकी वजह से सामर्थ्य और मजबूती का अनुभव किया। दूसरे को उठाने का प्रयास करके तुम्हें अपनी मर्यादा और संयम का अनुभव हुआ। यही शांति की प्राप्ति है।"
युवक ने इस सीख को समझा और उसे शांति के रास्ते पर चलने का अहसास हुआ। उसने गुरुजी का आभार व्यक्त किया और वापस लौट आया, अपनी आत्मा की शांति के साथ।
यह ज़ेन कथा हमें सिखाती है कि जब हम कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करते हैं, तो हम अपने अंदर की सत्य शांति को प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए हमें धैर्य और संयम की आवश्यकता होती है।
ब्रह्मज्ञान : जैन कथा 2
किसी एक गांव में एक बुजुर्ग ब्राह्मण बाबा रहते थे। उनको एक बेटा था, जो ब्रह्मचारी बनकर अपने पिताजी के साथ ही रहता था। वह बेटा बहुत अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद अज्ञानी था। उसे ब्रह्मज्ञान की भावना समझने में समस्या होती थी।
एक दिन, वह बेटा अपने पिताजी के पास गया और कहा, "पिताजी, मुझे ब्रह्मज्ञान का ज्ञान प्राप्त करना है। कृपया मुझे उसकी सीख दें।"
ब्राह्मण बाबा ने एक गिलास में पानी भरकर बेटे के पास रखा और कहा, "बेटा, इस गिलास में देखो, पानी धीरे-धीरे बढ़ रहा है। क्या तुम पानी की गति को समझ सकते हो?"
बेटा ने अपनी आंखें गिलास पर रखीं और कहा, "पानी की गति धीरे-धीरे बढ़ रही है, पिताजी।"
फिर बाबा ने एक चम्मच नींबू रस गिलास में मिला दिया और कहा, "अब क्या देखो, बेटा?"
बेटा ने फिर से गिलास पर ध्यान दिया और कहा, "पानी की गति तेज हो गई है, पिताजी।"
बाबा ने मुस्कान के साथ कहा, "देखो बेटा, जब हम अपनी मनसा वृत्ति को चंचल करते हैं, तब हमारा ब्रह्मज्ञान भी नष्ट हो जाता है। हमें मन को शांत रखना चाहिए और चिंता और चिंता के कारणों से दूर रहना चाहिए। जब हमारा मन शांत होता है, तब हम ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं।"
यह कथा हमें यह सिखाती है कि हमें अपने मन को शांत रखना चाहिए और चिंता के बारे में सोचने से दूर रहना चाहिए। जब हम अपनी मनसा वृत्ति को संयमित करते हैं, तब हम सुख, शांति और आनंद को प्राप्त कर सकते हैं।
