न्याय : एक बेहतरीन कहानी | Best Hindi Story
दोस्तों हमारे देश में कई ऐसे महान व्यक्तित्व वाले महापुरुष हुए है जिनके बारे में हम अच्छे से जानते नहीं हैं। इन इन महान लोगों के जीवन से हम छोटी-छोटी कहानियों के जरिए काफी कुछ सीख सकते हैं। आज ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व वाले महापुरुष के जीवन की एक छोटी सी कहानी आपके सामने रख रहा हूं।
ए कहानी है महादेव गोविंद रानाडे के बचपन की। महादेव जब छोटे बच्चे थे तब एक दिन वह अकेले अपने घर में बैठे हुए थे। उनके पास करने के लिए कुछ नहीं था इसलिए बैठे बैठे बोर हो रहे थे।
उन्होंने सोचा क्यों ना सांपसिडी का खेल खेला जाए! लेकिन प्रॉब्लम यह थी कि इस खेल को दो जन मिलकर खेल सकते थे। उन्होंने एक तरकीब लगाई और अपने साथ खेलने के लिए घर के एक खंभे को चुना।
अब खंबा तो खेल नहीं सकता इसलिए उन्होंने अपने दाहिने हाथ को खंबे के लिए और अपने बाएं हाथ को खुद के लिए पासा फेंकने के लिए तय किया। उन्होंने खेल शुरू किया। उन्होंने पहले दाहिने हाथ से यानी की खंभे के लिए और बाद में बाए हाथ से यानी के खुद के लिए पासा फेका।
देखते ही देखते उनका बाया हाथ उनके दाएं हाथ से हार गया यानी कि वह एक खंभे से हार गए! उनके इस खेल को सामने बैठे कुछ लोग देख रहे थे। वह महादेव के पास आए और हंसते हुए कहने लगे कि तुम तो एक खंभे से हार गए। तुम एक निर्जीव खंभे से भला कैसे हार सकते हो?
महादेव रानाडे ने उन्हें कारण बताते हुए कहा कि उनके बाएं हाथ को पासे फेंकने की प्रैक्टिस नहीं है इसलिए वह अपने दाएं हाथ से हार गए। लोगों ने उनसे पूछ कि फिर तुमने अपने लिए दाहिना हाथ क्यों नहीं चुना? तब छोटे से बच्चे होते हुए भी महादेव रानाडे ने जो कहा उसे सुनकर सभी भौचक्का हो गए। उन्होंने कहा कि अगर मैं यह जानते हुए भी कि मेरा बाया हाथ इस काम में कमजोर है इस निर्जीव खंबे के लिए अपने बाएं हाथ को चुनता तो वह अन्याय होता। तो क्या हुआ अगर मैं हार गया लोग मुझे यह तो नहीं कहेंगे ना कि मैंने अन्याय किया!
दोस्तों महान लोगों की सोच ऐसी ही महान होती है। महादेव गोविंद रानाडे ने भी अपने जीवन के आखिरी समय तक यही सोच बरकरार रखी। आगे चल के वे बहुत बड़े समाज सुधारक बने जिन्होंने समाजवाद और जाति व्यवस्था के खिलाफ वकालत की। इतना ही नहीं उन्होंने विधवा पुनर्विवाह और महिलाओं को शिक्षित करने की दिशा में योगदान दिया।
