कहानी : स्वर्ग का हकदार कोन? | Kahani Swarg ki
मरने के बाद स्वर्ग के द्वार पर चार व्यक्ति खड़े थे। इन 4 व्यक्तिओ में पहला राजा था, दूसरा एक बिजनेसमैन था, तीसरा पंडित था और चौथा एक आम आदमी(मजदूर) था।
किसी को भी यह पता नहीं था कि कौन स्वर्ग के अंदर प्रवेश कर पाएगा और कौन वहीं से वापस लौटा दिया जाएगा।
सब स्वर्ग का दरवाजा खूलने की राह देख रहे थे और आपस में बातें कर रहे थे।
जैसे कि राजा को मरने से पहले से ही आदत थी उसने अपनी बात सबसे पहले बताई," राजा ने कहा मैं बहुत प्रख्यात राजा हु, मैंने धरती पर अपना बहुत नाम कमाया है इसलिए पूरी संभावना है कि मैं ही स्वर्ग में जाऊंगा।"
फिर व्यापारी ने अपनी बात सामने रखी वह बोला," मैंने धरती पर खूब धन कमाया और उस धन से मैंने सैकड़ों लोगों की मदद की इसलिए मैं ही स्वर्ग का हकदार हूं।"
अब बारी थी पंडित की तो पंडित ने मुंह खोला और सबको यह कहा," चाहे तुम जो सोच लो लेकिन यह बात तो तय है कि स्वर्ग के दरवाजे खुलेंगे तो मेरे लिए ही। सब जानते हैं कि पंडित दिन-रात भगवान को याद करते हैं इसलिए स्वाभाविक है कि स्वर्ग में पंडित का स्वागत किया जाए।"
जब सब ने अपना अपना पक्ष रख दिया तब सबकी नजर उस मजदूर पर थी जो चुपचाप अपनी नजरें नीचे झुकाए बिना कुछ बोले वहीं पर खड़ा रहा।
स्वर्ग का दरवाजा खुला और वहां पर एक देवदूत आकर खड़ा हो गया। देवदूत के हाथों में एक पुस्तक थी जिसमें इन सभी के कर्मों के बारे में लिखा हुआ था।
देवदूत ने सबसे पहले राजा को अपने पास बुलाया और उसको पूछा, "तुम बताओ तुमने अपने जीवन में क्या-क्या अच्छे कर्म किए हैं? मैं उन्हें इस पुस्तक में देखकर फैसला करूंगा कि तुम्हें अंदर आने देना है या नहीं।"
राजा ने कहा,"मेरा राज्य जितना बड़ा था उतना ही समृद्ध था और मेरी राज्य के सभी लोग खुशहाल थे। सभी बड़े आनंद से रहते थे मैंने उन्हें कभी भी किसी भी चीज की कमी नहीं होने दी। यही मेरे अच्छे कर्म है।"
देवदूत ने अपने पुस्तक में देखा और देखने के बाद राजा से कहा," तुम सच बोलते हो, तुमने अपने राज्य की प्रजा को बहुत सुखी रखा था लेकिन तुमने अपने राज्य की सीमा बढ़ाने के लिए जितने युद्ध किए थे उन युद्ध की वजह से हजारों सैनिकों ने अपनी जान गवा दी थी। उन हजारों सैनिकों के परिवार के दुख का कारण तुम बने थे इसलिए तुम स्वर्ग में नहीं आ सकते।"
अब बारी थी व्यापारी की। व्यापारी से जब देवदूत ने पूछा कि तुम्हारे अच्छे कर्म क्या है तब व्यापारी ने उससे कहा," मैंने सैकड़ों लोगों को खाना खिलाया है। कई आश्रमों में दान किया है। कई निराश्रित लोगों के लिए घर बना कर दिया है यह मेरे अच्छे कर्म है।"
देवदूत ने फिर से अपने पुस्तक में ध्यान से देखा और देखने के बाद व्यापारी से कहा," तुम्हारा कहना भी ठीक है कि तुमने बहुत दान धर्म किया है लेकिन यह दान धर्म तुमने जिन पैसों से किया है उन पैसों को कमाने के लिए तुमने न जाने कितने झूठ बोले हैं। कितनी हेराफेरीया की है और कितनी मिलावटे की है इसलिए तुम भी स्वर्ग में नहीं आ सकते।
जब पंडित से यही सवाल किया गया तो पंडित ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा,"मैंने अनगिनत लोगों को ज्ञान दिया है। हजारों यज्ञ और पूजाए की है और दिन-रात भगवान का जाप किया है। इससे अच्छे कर्म और क्या ही हो सकते हैं?"
देवदूत ने अपनी पुस्तक के अंदर झांक कर देखा और पंडित से कहा,"आपने जितने भी लोगों को जो भी ज्ञान दिया है उन बातों पर खुद कभी अमल नहीं किया!
आपने यज्ञ, पूजा या भगवान का नाम निस्वार्थ भाव से कभी नहीं लिया इसलिए आपका भी स्वर्ग में आना प्रतिबंधित है।"
मजदूर यह सब देखकर हैरान था वह अब तक जिन्हे महान समझता आ रहा था उनकी व्याख्या स्वर्ग के दरवाजे पर आकर बदल गई थी। धरती पर जिन कामों को अच्छा समझा जाता है उनका यहां पर कोई मूल्य नहीं था।
यमदूत ने जब इस मजदूर को अपने पास बुलाया और इससे पहले कि वह उससे उसके अच्छे कर्मों के बारे में पूछता मजदूर बोल पड़ा,"प्रभु मैं जानता हूं कि मैं भी स्वर्ग में आने के लायक नहीं हूं लेकिन मैं फिर भी एक बार बाहर से ही स्वर्ग को झांक कर देखना चाहता हूं बस इससे ज्यादा मेरी कोई इच्छा है ही नहीं। क्योंकि ऐसी इच्छा पालने के लिए मैंने जीवन में कुछ भी नहीं किया है। मैं पूरा दिन मेहनत करता और जो भी पैसे कमाता उन्हें अपने परिवार के पालन पोषण में खर्च कर देता इसलिए दान धर्म के लिए कुछ बचता ही नहीं। लोगों की भला मैं क्या सेवा करता क्योंकि काम के बाद जो थोड़ा सा समय मिलता उसको अपने ही बूढ़े मां बाप की सेवा में बिता देता और यह सब करने के बाद मैं कभी-कभी मंदिर भी चला जाता और भगवान से जैसा भी मुझे दिया है उस जीवन के लिए धन्यवाद कहता"
देवदूत ने अपनी पुस्तक में बड़े ध्यान से देखा और थोड़ी देर देखते ही रहा फिर उसने मजदूर से पूछा कि तुम याद करके बताओ तुमने कभी तो कोई अच्छा काम किया होगा।
मजदूर ने थोड़ी देर सोचने के बाद बोला,"हां मुझे थोड़ा-थोड़ा याद है। एक बार मैं बहुत भूखा था और मैं खाना ही खाने बैठा था की एक बहुत ही कमजोर कुत्ता जो ठीक से चल भी नहीं पा रहा था, वह मेरे पास आ गया और मेरे खाने को देखने लगा तब मैंने अपनी रोटी उसे खिला दी थी और उस दिन मैं खुद भूखा सोया था।"
मजदूर की बात सुनने के बाद देवदूत मुस्कुराया और मजदूर को बड़े सम्मान से स्वर्ग के अंदर लेकर गया।
दोस्तों अच्छे कर्म लोभ, मोह, माया इन सब भाव में आकर नहीं किए जाते और ना ही उन्हें अच्छे कर्मों की श्रेणी में गिना जाता है। निस्वार्थ भाव से किया गया एक ही अच्छा कर्म भी आपके जीवन के सारे पाप धोने की शक्ति रखता है। इसलिए जब भी मौका मिले निस्वार्थ भाव से और अच्छे मन से अच्छे कर्म किया करें।
It was a great experience for me
जवाब देंहटाएंPleasure is mine
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